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दक्षिण अफ्रिका का सत्याम्रह

सोच बिचारकेवादहमसबएकमत सेइसीनिर्शयपर पहुँचे

किजोसत्यऔरयोग्यहो,वही किया जाय। इसके लिए यदि अविनयी होने का दोष हमारे सिर मढ़ा जाय, तो उसे भी हमे सह लेना चाहिए । सरकार यदि हमारे साथ न्याय करना चाइती हो, और इस कागज को पढ़ कर वह झूठ-मूठ द्वीमाराज होते का करकेन्याय करने सेइन्कार भीकरदे, तोपरवा नहीं। बहाना इस जोखिम कोभीहमे मोललेना चाहिए। अगर हम यह फवूल करने के लिएतैयार नहीं कि मनुष्य कीदेसियत से हम किसी भी

तरद द्वीनहैं,और साथ ही अनियमित समय तक तमाम दुखों को सहने के लिए तैयारहैं,तब तो हमे वही रात्त्ता प्रदृण करना होगा जो सरत और योग्य हो ।

अब शायद पाठक देख सकेंगे कि इस वार के निश्चय मेंकुछ

और दी नवीनता, कुछ और दी विशेषता थी। उसकी प्रतिध्वनि घारा सभा और गोरों के मर्ढल्ों मेंभी सुनाई दी। कितनों हीने भारतीयों की हिम्मत की तारीफ की। पर कितने ही गोरे आग चंगृता भी होगये। उन मुँहसेत्तो यहउद्गारभीनिकलने तगेकि दिंदु-

ल्वानियों को इस बहर्डता के लिएजरूर हीसजा देनी चाहिए। दोनों पक्षों नेअपनी चाजनन्दाल से भारतीयों के इस कार्य क्री नवीनता को स्वीकार किया। यद्यपि उत समय सत्याम्रह एक दम नवी। वस्तु थी। पर फिर भी पिछलेसत्याप्रद्द कीअपेज्षाइसपत्र द्वारा कहीं व्याडा हलचल मच गई ।इसका एकप्रत्यज्ञ कारण भी है। जिस समय सत्याप्रद शुरू हुआ था, उस समय कौस की शक्ति का ठीक ठीक पता भी झिसी को नथा। उस समय न तो ऐसा कांगज

और न उसको भाषा ही शोभा देसकती थी। पर अगर तो कोम थोड़ी बहुव कमीटी पर चढ़ चुड़ी थी और इस वात को सभी जान गये ये फि सामाजिक मुमोघतों का सामना करते हुए भाने