पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२९४

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युद्ध की पुनरावृत्ति

पाठकों के दिल में एंक शंका हो सकती है। इस '“जंगछी पन? का इन्कार तो पहले पहल १६०६ में दी कर दिया गया था;

जब सत्यामह की प्रतिज्ञा लीगई थी |ओर यदि यह सत्य है, तो इस कागज मे ऐसी कोन भारी चिशेपता थी, जिसके कारण मैंने उसे इतना महत्त्व दे रक्खा है और मेंयह कह रहा हुँ किइस कागज के द्वारा ही कौम ने अपना जंगत्ी होने से इन्कार करना

आरम्भ किया । एक दृष्टि से यह दलील सत्य भानी जा सकती है। पर जरा गहरा विचार करने पर माकछूम होगा कि इन्कार करने का सच्चा आग्स्म तो निश्चय-पन्न सही होता है |पाठकों को यह्‌ स्मरण रखना चाहिए कि सत्याम्रह की प्रतिज्ञा कीघटना तो अन्ता-

यास ही होगई थी, उसके बाद की कैद बगैरा सीउसका एक अतिबाय परिणाम मात्र थो, और उसमे कोम ने विजय भी अज्ञावत: ही प्राप्त कीथी।इस कागज के समय तो सम्पूर्ण ज्ञान और अपनी प्रतिष्ठा केलिए दावा करने का स्पष्ट हेतु भीथा। पहले की तरह खनी कानून को रद करने का द्वेतु तो 'अच भी जरूर था। पर इसके साथ ही साथ भाषा, शेज्ी, काय-पद्धति का चुनाव आदि में

भी काफी फके थां । शु्ञाम मालिक को सल्लाम करवा है, और एक

मित्र भी अपने मित्र को सत्ञाम करता है। है तो दोनों ही सलाम, पर उन दोनों में इतना फक हैकि एक तटस्थ प्रत्षक फौरन एक

को गुज्ञाम ओर दूसरे को सिन्र सममक जाता है । “अल्टिमेटमू! भेजते समय हम ज्लोगों मे यह चर्चा भी

हुईं थीकि समय देकर उत्तर माँगना कहीं अविनय मे तो नहीं

, शुमार होगा ? कहीं ऐसा न हो कि स्थानीय सरकार हमारी मॉग को ल्वीकार करने जा रही हो, और इस कागज को पढ़कर चिद जाय और उसको अस्वीकार करदे। क्‍या, केवल अप्रत्यक्ष रूप

। से कोम का निश्चय जाहिरकरदेना द्वीकाफ़ी नहोगा ! इस तरह