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दक्षिण अफ्रिका का सत्याम्ह

के 'हेली मेल! के जोड़ान्सबर्ग वाले सम्बाददाता नेभी अपने

पत्र को सभा का वर्णन भेजा था। उसने परवानों फी इस होी की तुलना उस घटना के साथ की थी, जब श्रमेरिका के श्प्रेजों

ने इग्लेण्ड से भेजी हुईंचाय को पेटियों की वोस्टन के बन्दरगांई मे डुबोकर अपना यह निश्वय जाहिर किया था कि वे कभी इंग्ले एड की भ्रधीनता स्वीकार नहीं करंगे। दक्षिण अफ्रिका मे एह

तरफ तो था १३००० भारतीयों का निराधार समुदाय और दूसरी ओर था दरल्सवात् का बलशात्री राग्य ! उधर अमेरिका में एक तरफ हर वात मे कुशल गोरे लोग थे और दूसरी तरफ अंग्रेजी सल्तनत । मेरा तो खयाल है कि इन दोनो की तुलना झर 'ढेलीः

मेल! के सम्बाददाता ने भारतीयों के विषय में जरा भी अत्युर्ति

नहीं की । भारतीयों के पास तो सित्रा अपने सत्य और परमाक्षा के ऊपर श्रद्धा केऔर कोई दृथियार हो नहीं था। इसमें शर्फ

नहीं कि एक भ्द्धालु महुध्य के लिए यही हथियार सर्वोपरि हे ।

परन्तु जन-समान्ष मेअभी यह दृष्टि नहीं भाई। इसलिए नि:शत्ष १३००० भारतीय सशब्ष गोरों के मुकावले मे नि्बल समझे जावेंगे। पर वह दयाधन तो “निर्वल के वल राम” हैन इसलिए यही ठीक है क्लि ससार इन्हें निर्बत समझे |