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ऐच्छिफ परवाने की होली

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आलम भी इस सभा मे हाजिर था। खड़े होकर उसने कहा कि फने घड़ी भूल कौ जो आपको मारा था! और उसने भ्रपना असल

परवाना जलाने के लिए मुझेसोंप दिया। ऐेच्छिक परवाना तो उसने लिया ही नहीं था। मेंने मीर आज़म का हाथ पकड़ कर

प्रंस-पूर्चक दवाया और उसे फिर से कद्द सुनाया कि मेरे दिल्ल मे तो कभी किसी प्रकार का रोप था ही नहीं। मीर आलम के इस

कार्य से सभा को असीम हर्षहुआ। इस समय कमिटि के पास २००० से भो अधिक परवाने

जलाने के लिए आ पहुँचे थे। उनके चंदल को मैंने उस्त कढ़ाई मे पेलाया, अपर से मिट्टी कातेल छिडफा ओर लगाई दियासलाई !

एकाएक सारी सभा खड़ी हो गई, और जब तक वे परवाने जल्ते रहेतालियो से उसने सारे मेंदान को गु'जा दिया! कितने ही लोगों मे अब तक भी अपने परवानों को अपने पास ही रख

छोड था। अब उनकी वर्षा मंच पर होने ल्गी। उन्हे भी उस

कढ़ाई मे डाज्न दिया गया |जब उनसे पूछठा गया कि होली जलाने से पहले ही परवाने क्यों नहीं दिये, तब कई लोगों नेउत्तर दिया कि हमाय खयाल था कि होली जलने के बाद देने भे अधिक शोभा है, ओर उसका असर भी अधिक पढ़ता है। दूसरे कितनों ही नेसाफ तौर से कयूल कर लिया कि 'हमे हिम्मत द्वीनहीं पडतो थी। आखिरी घड़ा तक हमेंयद्दी सन्देह थाकि शायद परवाने न भी जत्ाये

जावें। पर अब यह होली देख कर तो हमसे जरा भी न रहा गया। जो सब की गति द्दोगी, वही हमारी भी दोगी,। इस तरह

की अव्याज सरलता के कई नमूने इसमें उस युद्ध मेंमिले) अग्रेज़ी

अखबारों के सम्बाददाता भी इस सभा से आये थे। उन पर भी उस त्तमाम दृश्य काबड़ा सुन्दर असर पड़ा। उन्होंने

अपने समाचार»पत्रों कोसभा का पुरा वर्णन भेजा था। इंग्लैण्ड