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दक्षिण शअ्रक्रिका का सत्याग्रह

समय मेरे पास कोई सामप्रो नहीं है।इसलिए शायद्‌ कईनाम छूट गये होंगे ।आशा है,वे सब्र भाई मुझे क्षमा करेंगे। ये प्र रण नामों को अमर करने के ज्िए नहीं, वल्कि मत्याप्रद् का झा

सममाने के लिए लिखे जा रहे६ ।इनके द्वारा में यह भी वंवाना

चाहता हैं.कि विजय कैसे प्राप्त हुई, उसमे कैसे-कीसेविध्व श्राति

हूँ, शरीर उन्हेंकिस तरद्द दूर किया जा सम्या है, जहाँ कहीं नामों

का अथवा नामधारियों का परिचय दिया गया दैवहाँ भी मेस हेतु केवल यही है कि आप यद जान जायें कि दक्षिण श्रफ्िका मेंनि

छर गिने जाने योग्य लोगे ने भी कैसे-केसेपराक्रम किये हैं,तट भी हिन्दू, मुसलमान, पारसी ईसाई आदि सबने किस तरह हिल

मिल कर काम किया और किस तरह ब्यापारी, सुशिक्षित भराहि सबने अपने अपने कर्तव्य का पालन किया । जहाँ कहीं गुर्णी जनों का परिचय दिया गया है,चद्दों उनकी नहीं वल्कि केवल उन गुणों ही की स्तुति की गई है ।

तो इस तरद जब दाऊद सेठ अपने सत्याप्रहियों की फोन को

त्ञेकर दा[सवाज्ञ की सरहद पर जा डदे वत्र सरकार भी गाकिश

नहीं थी। इतने वढ़ेदल को यूदि बह टरंसबाल में प्रवेश करने देती

तथ तो उसकी बढ़ी चदनामी होती ]इसलिए उन्हेंवह कैसे छोड

सकती थी १ सभी पकड़े गये |मुकदमा चला, और चाक्सरेस्‍्ट को सरहदी जेल मेंवह रत्न दिये गये। कौम का जोश और भी चढ़ा। नेटाल से हमारी सहायता के लिए आये हुए अपने भाइयों को यदि इम किसी तरह छुड़ा न सके, तो कमसे कम दांसवाल के भारतीयों को उनका साथ तो देना चाहिए न? यह सोचकर दुंसवात्ष केभारतीय भी जेल का मार्ग हूँढने लगे | गिरफ्तार द्वोने के तो अनेकों मार्ग थे। यदि कोई निवासी अपना परबाना नहीं बताता तो उसे व्यापार का परवाना नहीं मित्त