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दक्षिण अफ्रिका का सत्याग्रह

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की सजा भुगत कर फिर जेल मेंगये | वहाँ एक भदरो कैदी की तरह रहे | पसीने फी कमाई खाते और उन्हीं नित्य नये पकवान

जाने की झादत रखने वाले इमाम साहब ने मक्का के दे की राव पीकर खुदा के एहसान मनाये। वह रे तो ज़रा भी नहीं! हाँ, उन्होंने सादगी जरूर अख्तियार कर ली। केदी वन कर पत्थर

फोढ़े, साइ-दुह्त किया, और अन्य कैदियों क्री बराबरी में एक कतार में खड़े रदे ।अंत मेंफिनिक्समेपानी भरा ओर छापा"

खाने में कम्पोजिंग तक किया |फिनिक्स आश्रम में रहनेवालों के

लिए कम्पोशिंग सीख ज्ञेना अनिवाये कर्तव्य था। उसे इमाम साई

नेपूरा किया |आजकल् भारतवर्ष मेभी वह अपना हिस्‍सा देरहेहै पर ऐसे तो कई लोग जेल से शुद्ध हो गये |

जोफेस रॉयपेन वैरिस्टर, केम्त्रिज के ग्रैद्यूएट थे। नेटाल कं:

गिरमिटिया माता-पिता से जन्म ग्रहण करने पर भी 'साहंव शोग'

बन गये थे। बह तो घर मे भी बिना बृट के नहीं चत्न सकते ये। इमाम साहब को तो व.जू करते वक्त पाँव घोना पड़ते और खुलेपर से नमाज़ पढ़ना पढ़ती | बेचारे रॉयपेन को तो इतना भी नहीं करना पढ़ता था। पर उन्होंने वैरिस्टरी को छोड़ दिया, बगल मे साग तरकारी की टोकरी लटकाई और फेरी करते हुए गिरफ्तार हुए । उन्दोंने भी जे भुगती। एक दिन रॉयपेन ने मुझ सेपूछा-7 ०५क्या मेंसफर भी तीसरे दर्जे मे ही कहेँ (?

मैंने उत्तर दिया “यदि आप पहले और दूसरे दजज मे सफर

करंगे तो तीसरे दर्ज में मुझे और किससे सफर कराना बादिए (५

जेल में आपको बेरिस्टर कौन कहेगा ? ! हू जोसेफ रॉयपन के लिए यह उत्तर काफी था। वद्द भी जेल में धिघारे।

सोज्ञद सोलह वर्ष केतो फितने ही नौजवान जेलों में गये

फिर: ३४ 4 च्ट्ठ्र

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