$0७9९६
देश-निकाज्ा खूनी कानून के भंग के अपराध पर तीन प्रकार की सजाय॑
खजख्ी गई थीं। जेल, जुर्माना ओर देश निकाला । तीनों सजाये एक साथ देने का अ्रधिकार अदालत को था। छीठे छोटे मजि-
छोटों तक को यह अधिकार दे दिया गया था। पहले पहल तो देश निकात्ले के मानी ये थेकिअपराधी को टरन्सवाल फी हृद् से बाहर अर्थात नेटाल, फ्री स्टेट अथवा डेज्ञागोशा वे की हद में के जा कर छोड़ दिया जाय । उदाहरणाथ नेटाल की तरफ से आये
हुए अपराधियों को वॉक्प्रेस्ट स्टेशन फी हद से वाहर ले जा कर छोड़ दिया जाता था | इस तरह देश निकाज्ञा फरने से अपराधी
को सिवा अस्ुविधा के और किसी प्रकार की हानि नहीं होती थी। यह तो केबल खिलवाड़ था । इससे तो भारतीयों में और भी अधिक जोश बढ़ता था। इसलिए स्थानीय सरकार को भारतीयों को सताने के लिए (एक नवीन युक्ति ढूँढनी पडी | जेल में तो अब जगह थी दी नहीं। सरकार ने सोचा कि यदि भारतीयों को ठेठ भारत मे ही छोड़ दिया
जायगा तो वे जरूर निराश होकर शरण आवेंगे। और यह कुछकुछ सत्य भी
था। इस तरह एक भारी “जत्ये” को सरकार ने