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ध०

दक्षिण अफ्रिका का सत्याग्रह

भारतबर्ष भेजा | उसे बहुत कष्ट उठाता पड़ा। खाते-पीने क॑ भी वडी असुविधा रदों। जो सरकार के दिल में आता वे खाने छो मिलता |सब को डेक में होभेजा जाता। फिए ६४

तरह देशपार होने वाले की ज्ञमीन-जायदाद होतो उसका अपना एक पेशा भी होता; उसके आशित भी होते थे। कितने द्वीलोगों के सिर पर तो कजे था। इतने सब का त्याग करते की 'घमता

और शक्ति होने पर भी अनेक कोंग यह सव गेवाकर बरवाद होने के लिए तैयार नहीं होते थे । तथापि बहुत से भारतीय तो पूरीतरह मज़बूत रहे ।कई फिसल

अब जान वुक कर कैद होना छोड़ दिया। गये । ऐसे लोगों ने

उनमे से अधिकांश ने इतनी कमजोरी तो नहीं दिखाई कि जे

जलाये परवानों केवदते फिर से नये परवाने ले ले । पर कुलषेक

कहे ढर कर यह भी कर डाला ।

पर फिर भी जो हूयेउनकी संख्या ऐसी तुच्छ भी नहीं थी।

उनकी बहादुरी श्रसीम थी। मेरा खयाल है,कि उनमे कितते ही हो ऐसे थे, जो हँसते हँसते फाँसी पर भी लटक सकते थे | मा जायदाद की तो उन्हें परवाह क्‍या थी? पर जिन्हें भारतवर्ष

भेजा गया था, उनमे से अधिकाश तो गरीब ओर भीरु भी थे।

केवल दूसरों के विश्वास पर ही वेकढ़ाई मेंसम्मिलित हुए ये। उन पर इस तरह जुल्म होता देख कर वरदाश्त करते रदना कठिन था। पर उस समय यही समझमेनहींआता था, कि उनकी सहायता

किस तरह कर। पैज्षा वो इतना ही-थोड़ा साथा। और इस तरदद शीलड़ाईके की सद्गायता देने लगे तो निश्चय ही द्वार

हँती है । क्योंकि उसमे लालची लोग फ़ोरन शामिल हो जाते हे | इसलिए घन का लालच दे कर तो एक भी आदमी नहीं रक्‍्खा