पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३३१

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दक्षिण अफ्रिका का सत्याप्रह

युद्ध केभीषण रूप धारण करते ही अलग जा खड़े होगये। अब ऐसा समय आ गया था कि जब अधिक द्विम्मव और सहत शक्ति की आवश्यकता उपस्थित दो गई। पर इसमे भी दन्सवात कक

भारतोंय पीछे न हटे । युद्ध शुरू रखने के ल्लिए जितने योह्ाशों की आवश्यकता थी, उतने तो जरूर ही वच रहे थे !

पर इस तरदद दिन व दिन ज्यादा से ज्यादा मुश्कित पर भारतोय कसे जाने लगे । व्यों-म्यों भारतीय ज्यादा व्यादी चल दिखाते गये त्योंत्यों सरकार भी अधिक-अधिक वल हो

लिए और खास कर उसे प्रयोग करती गई। वदमाश कैदियों के

कैदियों के लिए जिन्हें सरकार 'सीधा” करना चाइवी दे) हु

फैंदखाने होते हैं। टन्सबाल में भी ऐसे केदखाने थे। जिनमे

एक का नाम 'हायकलुफ' था। वहाँ का दारोगा भी बढ़ा जालिस

और मजदूरी भी वैसी ही सख्त । पर सेरकार को भी ऐसे केदी

मिलगये जो उन दोनों से बढ़ गये। वेमजदूरी करने क्नो पी तैयार थे,पर अपमान नहीं सद्द सकते थे। दारोगा में उनका अपमान किया, उत्तर में उन्होंने उपवास शुरू कर दिये । शर्तेयद थी, कि जब तक हमे या इस दारोगा को यहाँ से हटाया न जायगा

हम अन्न को नहीं छुऐँगे। ये उपवास शुद्ध थे। धपवास करने वाले ऐसे नहीं थे, जो चुरा कर छुछ था लें। पाठकों को यह भी जाने लेना चाहिए कि इस तरह के मामलों में यहाँ (भारत में) जिस

वरद चर्चा ओर भान्दोलन दो सकते हैं, उतना दू|सवाल मेंनहीं

द्दोसकते थे। फिर वहाँ के नियम भी बढ़ेसख्त ये। ऐसे समय

मी कैदियोंसे मिलने जुलने की सख्त मुमानियत थी । सत्याम्रदी

यदि फेदखाने मे जाता तो उस्ते अपने आप को खुद ही सेसालना

पढ़ता | युद्र गरीबों काथाऔर गरीजी-पूर्वक चल्ञाया भी जा रहा था। इसलिए ऐसी प्रतिश्ञाओं में खबरें भी बहुत ये।