पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३३०

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देश-निकाज्ञा

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“विचार किया जाय, तो कद्दना होगा कि उससें किसी ऐसी वात की

न्यूनता न थीकि जिसकी हमे उससे आशा करनी चाहिए * हमे

बहुत बड़े-बड़े विद्वान नहीं मिल्ले परफिर भी द्वृन्सवाल का युद्ध

झुका नहीं। यदि नागापन जेसे शूर सिपाद्दी हमे नहीं मित्षते तो क्‍या वह युद्ध चक्न सकता था ? जिस प्रकार नागापन को मृत्यु जेल के दु'खों के कारण हुई,

उसी प्रकार नारायण स्वामी की सत्यु देश निकाले के कारण हुई। देश निकालते के कष्ट उसके लिए मृत्युूप सावित हुए, पर इन

घटनाओं के कारण कौम हारी नहीं । हाँ, कमन्ोर आदमी जरूर जाकर अलग खड़े होगये। पर वे भी तो यथा-शक्ति अपना

हिस्सा अदा कर ही चुके थे। उन्हें कमजोर कह कर हमे उनकी अवगणुना कठापि नहीं करनी चाहिए। समाज मे यह एक चाल सी पड़ गई है कि आगे बढ़ने वाके अक्सर पीछे

रहने वालों का तिरकार करते हैँ और अपने को बहुत भारी समम लेते हैं | पर कई वार बात तो यथाथे में ठीऊ इसके विपरीत द्ोती है । जो पचास देने की शक्ति रखता

है, वह पचीस देकर यदि बैठ जाय, और पॉच देनेकी शक्ति रखने वाला पूरे पाँच दे दे तो हम यही कहेंगे कि पॉच वाले ने ज्यादा दिये |तथापि कई वार वह पचीस देने वालो पॉच देने वाले के सामने फूलता है । पर हम जानते हूकि इस तरह फूज्ञने के लिए

उसके पाप्त कोई कारण द्वीनहीं है| दसी प्रऊार अपनी कमजोरी के कारण आगे न बढ़ सकने वाज्ञा यदिं अपनी शक्ति का उपयोग

कर चुका हो, और दिल चोर कर काम करने वाला भत्ते ही मामूली नाप को देखते हुए अधिक शक्ति का उपयोग भी करता रहे, तो भी दस तो यद्दी कहना पड़ेगा कि वह पहला आदमी ही अधिक योग्य है । इसलिए देश-सेचा तो उन्होंने भी की है जो