पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३३८

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फिर डेपुटेशन ६३ 2अीपकी कढ़ाई न्‍्यायोचित हे. और आपके साधन भी शुद्ध है।

फिर मैंआपको केसे छोड़ सकता हूँ ? पर मेरी परिरिथित्ति से भी

आप नावाकिफ नहीं हैं। दुःख तो भोगना होगा आपको | इसलिए जरा भी कही सममोता हो सकता हो. तो उसे कवूल् करने की सलाह आपको देना मेरा धरम है। पर यदि अपनी टेक के लिए

आपको कुछ कष्ट उठाने पड़े और आप उन्हें हप-पूर्चक सहने को तैयार हों, तो फिर मेंआपको केसे रोक सकता हूँ? में तो आपको धन्यवाद ही दूँगा । इसलिए आपकी कमिटी का अध्यक्ष तो में अवश्य ही रहँगा। और मुमसे जो कुछ सेवा-सहायता बन पडेगी जरूर करता रहूँगा | पर आपको इतना स्मरण रखना चाहिए कि

सरदार-समा में मेंएक छोटासा सभ्य हूँ। मेरा प्रभाव बेसा कहने

योग्य नहीं है.। किन्तु आप इतना विश्वास रवखे कि वह जो कुछ

“भी होगा उसका उफ्योग़ वराबर आप ही फे लिए होता रहेगा ।”

ये उ्त्साह-बधेक वचन सुनकर हम दोनों बड़े खुश हुए ।

पाठकों ने शायद्‌ एक मीठी वात की तरफ ध्यान नहीं दिया होगा । जैसा कि ऊपर कह्दा जा चुका है, सेठ द्ाजी हवीब और

मेरे बीच कुछ मतभेद था । तथापि हम दोनों मे प्रेमऔर विश्वास भी इतना था कि सेठ द्वाजी दबीच को अपना विरोधी कथन मेरे द्वारा कहलाने में जरा भी दिचक्रियाहट न हुई। उनको इतना

विश्वास था कि मेंउनका कथन लाइे ऐंम्ट्दििल के सामने घिलकुत्त अच्छी तरह पेश कर दूं गा।

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यहाँ पर पाठकों से एक असस्वद्ध बात भी कहे देता हूँ। इस

“आए इस्ैण्ड मे क्रान्तिकारियों सेमेरी बात हुई। उन सब की दल्ीलों का खंडन करने तथा दक्षिण अफिका भें बस॑ने वाले उसी प्रकार के विचार रखने वाले मनुष्यों काशंका-समाधान करते करते

(हिन्द स्वराज्यः का निर्माण होगया । उससे प्रतिपादित मुख्य मुख्य