टॉल्थटॉय फास
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शुरू ही रखते |किन्तु सबसे वड़ी कठिनाई तो यह थी कि तामित्न
तेलगु और गुजराती इन तीन भाषाओं के बोलने वालों कोएक
साथ क्या और क्रिस तरह पढ़ाया जाय १ मातृभाषा के द्वारा शिक्षा देने का लोभ तो हमेंअवश्य दी रहता था ) तामित्न तो में जानता भी था पर तेलगु तो कप्तम खाने को भी नहीं । इस द्वाल्त में अकेला एक शिक्षक क्या-क्या कर सकता था ? युवकों में से कुछेक से शिक्षा का काम लेना शुरू किया |पर वह संफत्न नहीं
हुआ । भाई प्रागजी का उपयोग अवश्य ही होता था ! युवकों में से कई नटखट थे और कुछ आलसी । किताबों से उनकी कभी
बनती ही नहीं थी। भज्ञा ऐसे विद्यार्थी पाठकों के पास क्यों कर जावे ३ फिर मेरा काम भी अनियमित रहता था। आवश्यकता
पड़ने पर मुझे जोहान्सभर्ग जाना ही पड़ता। यही द्वाल पति केल्नवेक का था | दूसरी कठिनाई धार्मिक-शिक्षा के विषय में पढ़ती । पारसी को अवेस्ता पढ़ने को इच्छा द्ोती। एक खोजा बालक था | उसके पास अपने पंथ सम्बन्धी एक छोटीसी किताब
थी । उसे पढ़ाने का भार उसके पिता ने मुझपर डाल रक्खा था। मुसलमान और पारसियों के लिए तो मैंनेकुछ किताबें एकत्र की |
हिन्दूधमे के वत्व भी, जहाँ तक मैंउन्हेंसममा था मैंनेलिख रक्खे
थे-यह याद नहीं कि मेरे बच्चों के लिए या फार्म में |अगर वे इस समय मेरे पास होते तो मेंअपनी गति-प्रगति जानने के लिए यहाँ लिख देता ।पर योंतो मैंने अपने जीवन मे ऐसी कितनी ही बस्तुर्य
फेक दीहैं,और जला डाली हैं।ज्यों-ज्यों मुझे इनके संग्रह करने की
जरूरत कम मातम होती गई, और साथ हीसाथ ब्यो-ज्यों मेराव्यवसाय बढ़ता गया, त्यों-स्यों मेंइनका नाश ही करता गया। पर इसके लिए
मुझे किसी प्रकार का पश्चात्ताप भी नहीं होता |यदि मैंऐसा न करता लो उनका संग्रह मेरे क्षिण पक धारी बोका और खर्चीली चीज