पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७६

दक्षिण अ्रफ्रिका का सत्याम्रह

क्टक-रक्षक अर्थात्‌ चप्पल बनाते का धंधा सीखने का निश्चय

किया। दक्षिण शफ्रिका में टूपिस्टू नामक रोमन फेथालिक पादरियों का एक सठ है ! वहाँ पर इस तरद के उयोग खतते हैं।

वेजर्मन होते हैं। उनमे से एक मठ भे जाकर इज्नवेक ने चप्पल्न धनाना सीख लिया, और मुझे तथा दूसरे साथियों को भी सिखा दिया | इस तरह कितने ही युवक्र चप्पल वनाना सीख

गये और हम अपने मित्र-्वर्ग मेउनको चेचने भी लग गये।

कहने वी आवश्यकता नहीं कि मेरे कई चेले इस फल्ा में मु

से बहुत आगे बढ़ गये ।दूसरा काम जो हमने शुरू किया था बह बढ़ाई का था | हमारी बस्ती एक छोटासा गांव ही था। वही

तो पाट सेलगाकर संदुक तक छोदी-मोरी चीजों कीजरूख

धनी रहती । वेसव चीजे हम खुद ही धना लेते |उन परोपकारी

मिस्त्रियों नेतो कितने ही महीनों तक हमारी सहायता की | इस काम के मायक स्वयं मि० फेलनवेक थे, ओर हमे कण-कण पर उनके कोशल और दक्षता का अमुभत्र द्ोता था |

बालक बालिकाओं श्रौर युवकों के हि ए पाठशाज्ञा तोअवश्य ही होनी चाहिए न ? यह काम सब से कठिन मालूम हुआ, और

अगर तक पूर्णता को नहीं पहुंचा। शिक्षा काभार खासकर मि फेलने चेक और मुमपर था। पाठशात्ञा कासमय दो पहुर के बाद ही

रखा जा सकता था । मजदूरी करते-बरते हम दोनों झूब थक

जाते । विद्यार्थी भीजरूर थक जाते । अर्थात्‌ यढ़ी देर तैक मारे

नींद के वेभी मोंफे खाते और दम भी झांखों परपानी लगाते, वर्षो

के साथ हसी-खेल करते शोर उनशा तथा हमारा भी भात्ृत्व

भगाते |पर बई बार यह सब प्रयत्त निषफल होता ! शरीर को अराम देना ही पडता। किन्तु यह तो पहला ओर धय से

छोटा विल्न हुआ क्योंकि अंघते रहने पर भी हम घर्ग को तो