पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३६१

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दत्तिण अफ्रिका का सत्याग्रह

मम मेंनहीं रही।मेंस्वयं भी दोबारबीमार हो चुका, इसलिए श्रवमेर,खयाल है,मेंउसअ्रधिकार कोभीखो चुका). उन्ही दिनों में स्वर्गीय गोखक्षे दक्षिण अफ्रिका ऋाये। तथहम

फार्म पर ही रहते थे।उस प्रवास केबर्णन केलिए एक छत अध्याय की जरूरत है। अभी तो शक कडुआ-मीठा संत्मस्ण

उसीको यहाँ लिख देता हूँ। हमाय जीवन-क्रम तो पाठकों

जान ही लिया। फार्म में खाट के जैसी कोई वस्तु ही नहीं थी। परगोखज़े जीकेलिएहमएकखोट मांग कर लाये। वहांपर

ऐसा एक भी कमरा नहीं था, जिसमे रहकर उन्हें पूरा एफान्त मित्त सके । बैठने के लिए पाठशाला के बच थे | पर इस स्थिति मेंभी कोमल शरीखवाले गोखले जी फो फासेपरबिना लायेहम

कैसे रहसकते ये। औरवह भी उसे बिनादेखे फ््यों कारह

सकतेथे१मेश खयाल थाकि उनका शरीर एक रात भरके लिए कष्टउठा सकेगा, और वह स्टेशन से फार्म तक करीबडेढ़

मील पैदल भी चल सकेंगे। मैंनेउन्‍हें पहलेहीसेपूछ रखखा था।

अपनी सरत्षता के कारण उन्होंने बिना विचारे मुझ पर विश्वास

रख सब व्यवस्था को कबूत्ञ भी करजिया था ।- कमे-धर्मसंयोगसे उप्ती दिन बारिश झआागई । ऐन वक्त पर एकाएक में भी कोई फेरफार नहीं कर पाया। इस तरद्द श्रकज्ञानमय प्रेम के कारण मैंने

उनको उस दिन जो कष्ट दिया, चद्द कभी नहीं भुलाया जा सकता।

चह भारी परिवत्तन को तो कदापि नहीं सह सकते थे । उन्हेंखूब

जाड़ा लगा। खाना खाने के लिए पाकशाला में भी उन्हें नहीं ले

जा सके! मि० केलनवेक के कमरे मेंउन्हें रक्‍्खागयाथा । वहाँ पहुँचते-पहुँचते तोसच खाना ठण्डा हो जाता। उनके लिए

में'६प" बना रद्द था,और भाई फ्ोतबाल ने रोटियाँ का

पर यह सब गरम फेसे रहे? ज्यो्यों बरके भोजनाध्याय समाप्त