पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३६०

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टॉल्टॉयफार्म (१)

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7 पहले खाना खाकर तयार हो जाते |बस इतना ही अन्तर उड़ता था। मुसलमान नवयुवकों ने भीअपने रोजे के दिलों भे ग्रडी विनयशोलता दिखाई, मिससे किसीको भी अधिक कष्ट नहीं

रने दिया |गैर मुसलिस बालकों नेइस समय में उन्तका साथ

दिया, इसका असर भी बड़ा श्रच्छा हुआ | झुस्े ऐसा एक भी प्रसंग यादनहीं, जब हिन्दू और मुसलमान बालकों भे भंगढ़ा

हुआ दो । बल्कि इसके विपरीत मेंतो जानता हूँकि सभी अपने

अपने घर पर रृद रहते हुए भी एक दूसरे के साथ बढ़ी शिष्टता

का व्यवहार करते थे |एक दूसरे की धार्मिक क्रियाओं मे सहायता करते थे ।

' हमस लोग इतनी दूर रहते थे |तथापि बीमारी बगेरा के लिए

जो मामूली सुविधाय रक्खी जाती हैं,उसमे से एक भी नहीं रक्खी गई थी । उस समय सुझे बालकों की निदों पिताके विषय में जो श्रद्धा थी, चद्दी बीमारी केअवसर पर कुदरती उपायों केअवल्स्बन

पर भी थी । सादे जीवन सें बीमार हो दी कैसे सकती है ।अगर

आवेगी तो उसका यथोचित प्रतिकार भी किया जायगा इत्यादि

मैंसोचता रहता था। मेरी आरोग्य विषयक किताब मेरे प्रयोग ओर मेरी तत्काज्ञीन श्रद्धा का स्मारक है । मुर्मे तोयह अभिमान था क्षिमैंतो बीमार दो द्वीनहीं सकता। मेरा खयाल था कि फेवल पानी, मिट्टी, उपवास और खान-पान में तरह-तरह के परिवतीन

करने ही से तमाम बीमारियों को दूर किया जासकता है। और

यही मेंने फार्म पर किया भी ।एक सी बीसारी के समय किसी “डॉक्टर का इलाज नहीं कराया गया। एक उत्तर हिन्दुस्तानी बूढ़ा

आया । अवस्था होगी कोई ७० वर्ष ।दमे और खॉसी से पीड़ित

था। भोजन मे फेरफार करने से तथा पानी के प्रयोगों के द्वारा चह निरोग हो गया । पर अब इस चरद के प्रयोग करने की हिम्मत हि