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- श्री गोखले का प्रवास
- इस टॉल्ट्टॉय फाम पर सत्याप्रदी अपनी जीवन-यात्रा तब कर
रहेथेऔर अज्ञात भावी में उनके लिए जो कुछ भी रचा जा रहा था उसके ज्षिए तैयार हो रहेथे ।न तो उन्हें. इस बात फी कोई भपबर थी और न कोई चिन्ता ही थी कि लड़ाई कब खतस छोगी
उनकी तो केवज् यही एक प्रतिज्ञा थी कि उस खूनी फादून के
सामने कभी सिर न झुकावेंगे । इसमे जो कुछ ढुःख कठिताइयाँ आवेंगी सब फी सहनेंगे। एक सिपाद्दी केलिए तो स्वयं युद्ध ही
जीत है। क्योंकि वह उसीमे सुख मानता है |भौर चूँकि लड़ना
भ लड़ना उसीके अपने अधीन होता हैं.दार-जीत तथा अपने सुल हुःख का भार भी उसी पर होता है. या यों कहिए कि हुःख और
पराजय जैसे शब्द उसके शब्द-कोष दी मे नहीं होते । गीता के शब्दों मेंकहें तो सुख-दुःख, द्वार-जीत उसके लिए समान दी है ।
इस बीच यों दी इक्वे-दुक्के सत्याम्रदी जेल करोंजाते रहते थे ।
५ भौरजब यह प्रसंग भी नहीं आता था तब फार्म की बाहरी प्रवृत्ति कोदेखते हुए कोई यह नही मात सकता था कि भ्रष्टाँसत्या
“ गद्दी रहते हैं, या वद्द लड़ाई की तैयारी कर रहेहैं। तथापि यदि कोई नास्तिक मिन्र॒ उधर आ निकलता तो