पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/३७७

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दत्तिए श्रफ्रिपा फा सथयाम्ह

दियाता और यदि वा टीफातार होता तो हमारी तिम्दा करतो'

/फाहिल हैं,भर क्या ! तभी तो जंगल में परेन्‍्पट़े खुगक़ पथ

रहेहै। जेल से हार गये इसीलिए तो फला के मुल्दर बाग मेंमह फर आराम से नियमित जीयन बिता रहे है,--शहर के मम से दूर भागकर सुपोपभोग कर रहहैं?दसतगद के टीआर के

फोई यह क्रिस तरह सममा सकता हैंहि मत्यम्रही भ्रनुवित्त रंति

से--नीति का भंग फरके जेल जाना कभी ठीक नहीं मममत्ता | भला उसे यह भी कौम मममावे कि सप्याप्रही की शा्वि श्रौर

मम्य मे ही युद्ध की तैयारी है। यह भी उसे योन कहे प्रही मनुष्य की सहायता का विचार गफ़ छोड देता है,किसला वह फेवल परमात्मा पर विज्लास रसता है। किन्तु अन्त मेंऐसे सयोगतो आजुटे मिनकी हमे कत्पना भी नहीं थी। अथवा योंफटे कि घह परमात्मा की साया थी। सहायता भी श्रकल्पित रीति से भ'

पहुँची। कसौटी का मौका भी ऐसा बढ़िया झागया,

जिसका किसी को खयाल तक न था। फलत भरत मेंहमे थाद्य विजय भी ऐपी ली जिसको संक्षार समझ सका ।

गोखलेनी तथा श्र्य नेताओं से मेंप्राथना कर रहा था कि वे

दक्षिण अफ्रिका आकर यहाँ के भारतीयों की स्थिति का अध्ययन

कर। इस बात मे पूरा-पूरा सन्हेद्र था कि कोई आवेगा भी या नहीं। सि० रिच भी फ़िसी नेता को भेजने की कोशिश कर रहे थे। पर ऐसे समय बहों आने की द्ग्मत कर सकता था जत्र लड़ाई विलकुल्ञ मंद हो गई हो !कोंत सर

(६११ मे गोलत्े इंग्लैस्ड में थे, दक्तिण भक्रिका के

ह अध्ययन तो उन्होंने धावश्यही कर लिया था। बल्कि धारासभयुद्ध ा्ों चर्चा भी दी थी। गिरमरिटियाओं को नेटज्ञ भेजना, बंद करने

भत्ताव उन्होंने धारासभा में पेश दिया था, जो स्वीकृत भी