बचन-भदू
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तैतो एक शब्द कहा और न लिखा ही। इसी पश्न मे उोने मुझे
प्रधापन और चेतावनी भी दी थी । जब वचन-भंग हुथा शो
हेड सयात इच्ा कि अय ज्ञगई का अन्त जल्दी न होगा। उन्हें
“मात मेंभी सन्देह था कि येमुद्दीभरलोग सरकार का सामना
केसे और कहाँ तक कर सर्यगे। इधर हमसे तैयारियों शुरू फर
दीं |हम जान गये थे कि श्रव उसके वाद जो युद्ध छिडने को था
मम हम शांति से ते बैठ ही नहीं सकते थे |हम सव यह भी ममम चुऊ़ थे कि अग्र की बार लस््बी-लम्बी सजाये भोगनता होंगी ।
गॉलल्टॉय फार्म बंद करने का सिश्रय हुआ। कितने ही कुटुम्च
अपने पुरुष-बर्ग के छूटते ही ्पने अपने धर चल्ले गये । बाकी रहने बालों मेंमुस्यत फिनिक्स के ही थे। अत' तय हुआ कि इसके बाद सत्याप्रहियों का अड्ठा फिनिक्स ही रहे । फिर याद तीन पौंड वालीलड़ाई से गिरमिटिया भी भाग ले तो नेताल मे रह कर उस प्रिलने-जुल़ने मेअधिक सुविधा होगी। इस खुयाल् से भी
फिनिक्स को,सत्याप्रहियों ४ केन्द्रचनाना तय हुआ ।
भ्रभी कढ़ाई शुरू करने की तेयारियों चल्न दो रही थीं कि
एक नवीन विध्म आ उपस्थित हुआ, जिसके कारण क्षियों को भी बुद्धमेंशामिल होने का अवसर मित्ञ गया। क्तिनी ही बहादुर ने तो इससे पहल्ते भी युद्ध में भाग लेने की भाज्ञा सॉगी थी। पेदाहरणार, जब परवाने ग्रिना दिखाये फेरी करके जेल मे जाना पैय हुआ, तब कितनी ही फेरी करने वाली स्लियों नेभी जेल जांते
- इच्छा जाहिर की थी। पर उस समय विदेश मे ल्षियों फो
भेजना हम सबको अनुचित माछुम हुआ। जेत़ मे भेजने
शेयक वैसा कोई कारण भी नही दिखाई दिया। अल्रावा इसके दस समय उन्हेंजेत्ञों में भेजने की मुभोतो दिस्मत भी नहीं हुई।
पेहिक इस समय तो मुझेयद्दी मादम हुआ कि जो कानून पुरुषों