पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४२९

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शश्छ

दत्तिए श्रफ्रीका का सत्यामह

तो हैजीवितों की सेवा करना |” उस शात बीरता के,ऐसी भसीम

आत्विकता के, और अगाध ज्ञामे के कई उदाहरण मेने उन गरीबों मेंदेखे। ह ५

इसी हृदता पृ्षंक चाल्संटाउन मेंस्री-पुरुप अपने कठिन धर्म

का पाज्न फर रहेथे। पर हम चाहसेटाउन में फह्दी शाति के लिए

नहीं भागे थे ।जिसे शाति की जहरत हो, भीतर से श्राप कर ते;

बाहर तो जहाँ देखिए--यदि देखना याद हो-तहाँ बढ़े

अच्रों में यद्ी किला हुआ नज़र आता है कि "यहाँ शांति नहीं मि्ा सकती |पर इसी श्रशाति के बीच मीराग्राई जैसी

भक्त अपने मुंदको विप का प्याला लगाते हुए हँसती है। इसी अशांति फे बीच अपनी अंधेरी खोली मे बैठकर सुकरांत हाथ में इलाइल का कटोरा लेकर अपने मित्र को गृह ज्ञान का उपदेश फरता है,भोर कहता देजिसे शाति की आवश्यकता होवह अपने हृदय से उसे ढूंढ ले ।

उस अलोकिक शाति के बीच सत्याप्रह्िियों का बह मछतावा दक्ष पढ़ाव डालकर पडा हुआ था। इस वात की उसे कोई चिंता तक नहीं थी कि कत् सुनह क्या होगा। मेने तोसरकार को लिखे दिया था कि हम ट्रान्सवाल में निवास करने के हेतुसे प्रवेश करता

नहीं चाइते । हमारा प्रवेश तो वह सक्रिय पुकार हे जो दम सर-

कार के वचन-भंग के उत्तर मे उठाना चाहते हैं। हमारा प्रवेश तो

उस दुःव का शुद्ध चिन्द है, जो हमारे शात्म-सम्मान की द्वानि

सेइमारे हृदयमेंद्वोरद्या है।यदि आप हमें यहीं चाल्संटाउन

में दवो गिरफ्तार कर लेंगे तो हम निश्चिन्त हो जावेंगे। यदि ऐस! आपन हि इम से से कोई चुपचाप शांति पूवक द्रान्सवाल मेंप्रवेश करलगेते इसके लिए इस जवावदेह नहीं हैं। हमारे युद्ध

, में छिपाने योग्य कुछनहीं है। इसमे किसी का व्यक्तिगत स्वार्थ भी