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अप्रतेका का सत्याम्रह
कहीं इन अंगरेज़ हडतातियों की तरह उपद्रव करदे तो एक घडी-
में आपको सीधा करदें। पर आप तो दुश्मन को भी सतारा नहीं चाहते |केवल स्रय॑ दु.छ सहकर जीतना चाहते हैं। विवेक और भयांदाक्ा जरा सी त्याम नहीं करते। फिर हम क्या कर सकतेहैं.९”
इसी प्रकार के ढदुगार जरनल स्मद्सके मुह से भी निकते थे।
पाठकों को इस वात का बराबर ख्याल होगा कि सत्याम्राही के विवेक और विनय का यह पहला ही उद्ादरण नहीं था।
चायव्य फोण में जब हड़ताल हुई तथ कितनी ही जगद्द गन्ना फंटा हुआ मैदान मे ही पड़ा था। वह यदि उचित स्थान पर नहीं पहुंचा दिया जाता तो मात्निओ़ों की बड़ी हानि होती |इसलिए १४०० आदमी फिर उस काम को पूरा करने के लिए लौट गए,
और माल को उचित तथा सुरक्षित स्थान पर पहुंचा कर फिर हंड़दाल मे शामिल्र हो गये। डरवन की म्युनित्तीपालिटी के.
गिरंसिटियाओं ने जब हडताल की तब उसमे भो जो मेदतर और
शफामाने का काम करते थे, उन्हेंवापिस भेज दिया गया । और देखुशी से लौट भी गये |यदि भेहतर और शफाखानों मे काम
करने वाले काम छोड़ देंतो सारे शहर में वीमारी फेल जाय, तथा
असताल मेंरोगियों की शुअ्रधा भी वंद हो जाय । और सत्याम्रद्द
तो कभी न चाहेगा कि उसके कार्ये का ऐसा परिणाम हो | इसलिए
ऐसे कार्यकर्ताओं को दृढ़ताल से मुक्त रक्खा गया। प्रत्येक्ष काम,
करते हुए सत्याग्रह्दी कोयह ज़हर सोच लेना चाहिए कि उप्तके इस काये का परिणाम विरोधी पर कैसा होगा ।
इस तरह के अनेकों विवेक पूर्णकार्यों का-अदृए्य प्रभाव,
चारों ओर मुझे दिखाई देता था। इसीसे भारतीयों की अठिष्ठा
दिन व दिन बढ़ती जा रही थी और सममौते के लिए भनुकृत, पछछप्ण्डल तेयार होताजा रहा था।
अभ्जा