अन्त का प्रारम्भ
श्प्ष्ट
"इप्ती की सहायता के बल्न पर युद्ध छेड़ा दे। हम बड़े-बूढों को,
गुरजनों की सहायता भी मांगते हँ। उसके मिल्ल जाने पर हमें
एप॑होता है.। पर मेरो तो यदी नम्न राय है. कि चद्द चाहे मिल्ते या न॑ मिले ।हमारी प्रतिज्ञा नहीं दूटनी चाहिए ।अंत में उस के पालन मेंआपका समर्थन और आशीर्वाद मैंमागता हूँ।”
यद् तार गोखत्ले जीकोभेजा गया। उसका असर उनके खात्प्य पर तो हुआ पर सद्ायता पर नहीं दो पाया। यदि
हुआ हो तो भो इस तरह कि व और भी बढ़ गई । उन्होंने शाह हार्हि'ज को तार भेज दिया । किन्तु हमारा त्याग नहीं किया।
बल्कि हमारो दृष्टि कासमर्थन ही किया । लाउं द्वार्डिजभी रद रहे।
एण्ड्यूज़ को लेकर मैं प्रिटोरिया गया । इसी समय यूनियन
५ रेखवे के गोरे कार्य-कर्ताओं ने बढ़ी भारी हृड़ताज्ञ करदी । इस हड़* तत्व से सरकार की स्थिति बड़ी नाजुक हो गई । मुझे भी कददल्ाया
गया कि फिर भारतीयों की कूच बोल दो जाय। मेंने तोजाहिर कर दिया कि मुक्त सेइस तरह रेलवे दृड़तालियों की सद्दायता
नहीं हो सकती। सरकार को महद्ध सताना हमारा उद्देश नहीं है। हमारी लद्ाई और उसका तरीका भी भिन्न है। यदि हमसे कूच करना ही होगा तो वह हम तभी करंगे जब यह रेलचे
पी हड़ताल शान्त दो जायेगी। इस निश्चय का बढ़ा ग॑मीर प्रभाव
पढ़ा रूटर ने इसके तार इंग्लैंड भेजे। वहां से लाडे अम्पट्द्िल धन्यदाद सूचक तार भेजा। दक्षिणी अफ्रिका के अंगरेज'
मित्रों नेसीधन्यवाद दिये। जरनल स्मदस के मंत्री ने विनोद में
4 बहा “मुद्दे तोआपके लोग ज़रा भी अच्छे नहीं लगते। मेंतिल-
भर सी उनकी सद्दायता नहीं करना चाहता। पर हम करे क्या
भाष लोग तो आपत्ात्ञ में भी दसारी सद्दायता करते हैं। आपको
डेसे मारा जा सकता है. मैं तो कई वार. चाइवा हूँ.कि झापभी