पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/४८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०६

दक्षिण भ्रफ्नीढा वा सत्याप्रह

घस्तु फा संप्रह भी सत्य से ही हो सकता है। अर्थात यदि दलिणी ; अफ्रिफा केभारतीय आज ही सत्याप्रद छा उपयोग कर सके, तो

आज ही वेसुरक्तित होसकते है। यह बिशेषना तो सत्याप्रह

भेभी नहीं है कि सत्य के द्वाराप्राप कीगई प्तु की रा सत्य को छोड़ देने पर भी की ला सकती हो । किन्तु यदि

यह सम्भव हो तो भी वह इप्ट नहीं माना जा सकता । इसलिये

आज़ यवि दक्षिणी अफ्रीका के भारतीयों की भ्रवस्था ग्रिगडी हुई

हैतो इसका कारण हमे यही समरक छेना चाहिए फ़ि चहां सत्या-

प्रदियों काअभाव है] यह कथत आजकल के भारतीयों के दोष को सूचित नहीं करता, चल्कि यह तो केव्न वहां की वलु-रिथिति

का द्शकमात्र है। व्यक्ति अयव्रा समुदाय उस वलु छो कहाँ से

छा सकता हैजो उसमें हुई नहीं ९ सत्याप्रद्दी सेवक तो एक के बाद एक चलन दिये |सोग़गजी, काहुलिया, भायदू, पारमी रुस्तमजी आदि की सत्यु केफारण अ्रनुभवियों में से बहुत ही कम लोग रद्द गये हैं। जो बचे हूँवे अग्रतक भी जूमते दी हूँ। और मुझे ठो इसमें जरा भी संदेह नहीं है कि यदि इनमें सत्याम्रह होगा तो वे भी जहर ही कौम को वचालेंगे ।

अन्त मे, इन प्रकरणों को पढ़ने वाले पाठक इस बाठ को तो जान गये होंगे कि यदि यह महान युद्ध नहीं छेढा जाता, यदि अनेकों भारतीय उन कष्टों भौर मुतीब्तों को न उठाते, जिन्हें उन्दोंति इस अप्रतिम युद्ध मेंउठाया, दोआज दक्िणी अफ्रिका मे भार

तोयों के लिए कोई स्थान दी नहीं रह जादा। इतना हैनहीं,

बल्कि दक्षिणों अफ्रिका कीइस विजय के कारण अन्यउपनिवेशों मेंरहनेवातेभारतीयों दी सी न्यूनाधिक परिमाण में रफ्ता ही

हंई । यदि दूसरे उपनिवेश अपनी रक्षा न कर सके तो यह सत्या-

भह का दोप नहीं फटा जायगा। बहिक कहना दोगा कि इन उप-