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पिछुली मुत्तीबर्तों परएक नजर
होंगे। अतः उन्होंने त्रेसशिक के दिसांव से भारतीयों की शक्ति का अनुमान कर लिया। पर इसमें उनका क्या दोष है? जो हो, आखिर नतीजा थह निकला कि नेटाल की धारासभा ने दो कातूब और बना लिये। उसमें भी मतविषयक लड़ाई में जीत
मिलने के कारण, रंगमेद को दूर ही रखना पढ़ा और गर्भित
भाषा से काम चलाना पढ़ा और उसीके बदौलत स्थिति मेंअन्तर न पडं। सारतीय जनता इस वारभी सूत्र जूकी; पर कानून तो
यथाविधि स्वीकृत होह्वीगया । एक के द्वारा भारतीयों के व्यापार पर और दूसरे के द्वारा भारतीयों के आगमन पर कठोर अकुश रख दिया गया। पहले कानून का आशय था कि कानून के द्वारा लियुक्त अधिकारी को आज्ञा केबिता किसी को व्यापार का लाइसेंस न दिया जाय। व्यवहार में गोरा चाहे किसी
भी प्रकार व्यापार का लाइसेंस आसानी से ज्ञा सकता था। पर यदि कोई भारतीय लाइसेंस के लिए प्राथेना करता तो रसे बढ़ी मुसीवतों के वाद कहीं बह मिलता ।बेचारे को वकीज्षों का खर्च सी देना पड़ता |दूसरे कानून का आशय यह था कि
पद्दो भारतीय नेटाल मेंप्रवेश कर सकता है;जो यूरोप के किसी
भी एक भाषाआाषियों मेंशामिल हो सकता है। फ्नतः करोड़ों
भारतीयों के लिए तो नेटाल के दरवाजे बिलकुल बन्द हो गये । शायद मुझसे जाब या अनजान में नेटाल के साथ अन्याय
न होने पावे, इसलिए यहाँगर यह कह देना जरूरी है कि यह कानून बनने के पहले यहाँका एक नागरिक बना हुआ भारतीय
यदि भारत अथवा अन्य किसी देश मेंजाकर फिर लोटकर
आदे तो चह अपनी विवादित स्लो और सावालिंग बालकों सह्दित
यूरोप की भाषा बिना ही जाने नेदाल में अ्रवेश पा सकता था।
इसके अतिरिक्त नेटाल मेगिरमिटिया और खतन्त्र भारतीयों