दक्षिग श्रफ्तीया गा मनयाग्राए
रद
आर फह्ा कि मिटिश सल्तनत गानूत में शुभ? की स्थान नी
देसकती। पाठकों को आगे घलकर यह अपने आप मांगम ऐ
जायेगा कि यह जीत कितने महर्य की थी। सेटाल की सरपार नेउसके उत्तर मेंए नया बिल उपस्थित किया। इसमे रंगमेद
न था, किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से एमला था भारतीयों पर है । भारतीयों ने उमफा विरोध भी जोरों सेकिया, पर '्र पी) पार दे निष्फत हुए। 2स कानून के दो मानी होने थे। उसका श्प्ट अर्थ कराने के लिए यदि भारतीय चाहते तो 'धरािरी दाह श्र्थात्ठेठप्रिवी कौन्सिल तक लग सफते थे । पर हाउना "चित
न समझा और अबतक भी मुझे तो यदी मालूम प्रोता हैफ़ि न मागड़ना द्वीउचित था। अमत्ी बात कुबून फर की गयी, यही
बढ़ा शनुम्रद्द हुआ । पर नेटाल के गोरो को प्रथवा बट़ों फी सरकार को इपने पर भी सतोप न हुआ । भारतीयों फी अद्ती हुई
राजमैतिक सत्ता को तो वे रोकना चाहते ही थे, पर वात्तव में देखा जाय तो उत्तकी दृष्टि भारदीयों के व्यापार पर और स्वतन्त
भारतीयों के आगमत पर थी। थे इस ययाल से बेचन हो रहे ये,
कि यदि तीस करोड़ जन-सख्यावाला भारतवर्ष मेटाल की तरफ
उल्लण तो वह्दोंके गोरोंका क्या छात्र होगा ? चेचारे थे तो समुद्र
मेंही वह जायेंगे। टाल में चार जञाख हबशो और चालीस
हजार गोरे, ६० हजार मिरमिटिये (उस समय), १० हजार मुक्त भारतीय तथा २० हजार खततन््त्र भारतीय थे। यों वो मोरयों फो
डरने का कोई विशेष मह्त्वपूर् कारण न था। पर ढरे हुए आदमी को दलोल्ों और मिसालों से कौन समझा सकता है?भारत की दीन-दीन अवस्था का तथा यहाँकीरीति-नीतियों फा उन्हें जरा
भी ज्ञान न था। अत. उनके दिल मेंयह एक ख्याल घुस चैठा था
कि जेसा साइसी और शक्तिभान् खुद है, बेसे हीभारदीय भी