पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/५४

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पिछली मुसीवतो' पर एक नज़र बा

[ द्राक्नबाल और दूसरे राप्य ] टाल को तरह फम-प्रधिक परिमाण मेंदक्तिण श्रफ्रिका

के श्रन्य राज्यों मेंभोभारतीयों के प्रति सन (८८० से

दो द्वेपभाव फल रहेथे। फेप फालोनी फो छोड़कर दूसरे सब

राज्य चही सममते थे कि भारनीय मजदूर को ऐसियत से तो बड़े काम के आदमी हैं।दूसरे गोरों के दिल में यह वात सुप्ररूप में जम गयी थी कि उनके स्वतन्त्र नागरिक होने से तो

गोगें को सिवा लुऊसान के और कुछ नहीं हैं। ट्रान्सवात् तो

प्रजासत्तात्मक राज्य था। वहाँ के प्रेमिटेन्ट ( श्रध्यक्ष )केसामने भारतीयों का यह कहना कि हम प्रिटिश प्रजा ई मारों अपनी

हँमी करा लेना था। भारतीयों को जो छुछ शिकायत करनी हो,

जेकेवज्ष अप्रेज राजदूत मे कर सकते है। पर आश्चयेको चाद तो यह थी कि जब ट्रान्सवाल स्वतस्त्र था तब अंग्रेजी राज-

चूत भारतीयों की जो सहायता कर सकता या चह्दी (सद्दायता )

ड्रान्मबाल अंग्रोजी साम्राज्य के अंतर्गत होने पर उससे न हों सकती थी । जब वार्ड मोर्ल भारत मन्‍्त्री थे, तथ ट्रान्सवाज्ञ के भारतीयों की ओर से उनके पास एक शिषप्ट-मण्डज्ञ गया था। श