पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/५५

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दसतिए अ्रम्रीका का सत्पाप्रए

जप

उन्होंने साक-साफ फहा था कि उत्तरदायी शासन-सधयार्शो परे बढ़ी (साम्राज्य )सरकार बहुत फम श्रंकुश रखती है। लत

राज्यों फी हम लढ़ाई का ढर भो दिखा सकते हैं पर साम्रार्य

के उत्तरायी शासन-व्यवस्था रखने वाले राज्यों सेतो दम

केवल सिफारिश भर कर सकते हैं।वे और एम फच्चे सूतरसे

बंधे हुए हैं।जरा 'परधिफ तानने लगे फि हूटा। बेल से तो काम

लिया ही नहीं जा मकता | विश्वास रखिए फि, जहाँ तक युक्त

से काम लिया जा सकता है, तदाँ तक में शअपती

प्रयत्न फरूँगा”। जा लेन्सडाउत और ला सेलबने भादि

भप्रेजी अधिकारियों नेकहा था कि ट्रास्सवाज् के साथ जो

युद्ध घोषित करना पढा उसके अनेक कारणों में एक वहाँ के भारतीयों की दुःखढ अवस्था भी थी।

आइए, अब हम इन ठुःखों की जाँच फरें। ट्रान्सवाल में

पहल्े-पहल भारतीय (८८९१ में दाखिल हुए । स्वर्गीय सेठ

अबूबकर नेट्रान्सवा्ञ की प्रधान नगरी प्रिटोरिया में अपनी दृकान खोली और उसके एक मुख्य मुदल्ले मेंजमीन मी खरीदे ली। अन्य व्यापारी भी एक के बाद एक वहाँ पहुँचे। उन्तका

व्यापार वहाँ खूब चल निकला। खवभावतः गोरे व्यापारियों के दिल्ल मेंइनके प्रति ईष्यां पैदा हुई। समाचारपत्रों मेंभारतीयों के ल्ञाफ लेख लिखे जाने लगे। भारतीयों को निकाल देने और उनका व्यापार वंद करने के लिए धारासभाशं मेंदरसुवार्तें आने मेंगोरों कीधन-तृष्णा बेहद बढ़ गयी थी। लगी। नये प्रदेश

'तीति-अनीदि का ख्याल उन्हें नरहा। धारासमाश्ों मेंउन्होंने नो

बंइखुंवास्तें भेजी थी, उसमें ऐसे वाक्य हैंः-, 'े लोग ( भारतीय व्यापारी )यही नहीं जानते कि मानवी सभ्यता क्‍या चीज है।

ब्येभिधोरे से पैदी हो जाने वाले रोगो सेबद्सद रहेहैं। औरठ