पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/८४

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भारतीयों ने क्या किया १

उठी । नेटाल के गोरों नेबढ़ी-बढ़ी सभायें हुईं। लगभग तमाम

अग्नगण्य गोरों नेइसमें भाग लिया। खासकर मुकपर और

साधार्णतया तमाम भारतीयों पर सख्त टीकायें हुई । "कोलेंड”

ओर “नाद्री” के आगमन को चढ़ाई का स्वरूप दिया गया। सभो के वक्ताओं ने यह अथे लगाया कि इन आठसौ मुसाफिरो

को मेंदी लाया हूँऔर नेटाज को स्व॒तन्त्र भारतीयों से भर देने

का मेरा यह पहला प्रयत्न है,भादि सभा को सममाया। सभा में सबने एक मत से यह प्रस्ताव स्वीकृत किया कि दोनों स्टीमरों के

मुसाफिरों कोऔर सुझे! किनारे पर न उतरने दिया जाय । यदि नेटाल की सरकार उन्हें न रोके अथवा न रोक सके तो अभी

बनायी गयी समिति कानून को अपने हाथ में ले केऔर अपने ब्न से भारतीयों को यहाँ उतरने से रोके |दोनों स्टीमर एक ही

दिल नेदाल के वन्द्रगाह ढवेन को पहुँचे |

पाठकों को याद होगा कि प्लेग नेपहले पहल सन्‌ १८६६ में भारत को अपना स्वरूप दिखाया था। नेटाल की सरकार के पास

हमें लाटाने केलिए कोई कानूनन्‌ उपाय तो था ही नहीं|उस समय प्रवेश-प्रतिबन्धक विधान अस्तित्व में नहीं आया था।

नेटाल सरकार का झ्कुकाव तो पूर्णतया उस कमिटी की ओर दी था। एक सरकारी स्त्री स्वर्गीय मि० ऐस्कंब कमेटी के काम में पूरा भाग लेते थे । वे दी कमिटी को उत्तेज्ित भी करते थे। तमाम बन्दरगाहों मेंयह एक नियम था, कि जिस किसी स्टीमर मेंछूत

रोग (फैलने वाज्ञा रोग) हो गया हो अथवा जो किसी ऐसे बंद्र-

गाह से आ रहा हो जहाँ वह रोग हो तोउस स्टीसर को एक

खास समय तक क्ॉरंटाइन में रक्खा जाय। अर्थात्‌ इसके मानी यह हुए कि उस स्टीमर के साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध न

- रक्‍्खा जाय और मुसाफिरों का माल-असबाब आदि भी,न