पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/८३

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दक्षिण श्रकीका का सत्यामह

पल

कर सका। इन सथ बातों का सार जब नेटालवासियों नेदेखा तब वेमेरे खिलाफ बहुत उमड़ गये | खूंग्री यद्ट थी कि जोकुडठ

मेंनेनेटाल मेंलिखा और कह्दा था, वह मेरे भारत मेंदिखे केखों और भाषणों की अपेज्षा अधिक सख्त और खुलातेवार या। भारत मेंमैंने एक भी ऐसी बात नहीं कही थी, जिसमें जरा भी

अत्युक्ति हो। पर मेंअपने अनुभव से यह बात जरूर आतता था कि एक अपरिचित आदी के सामने जिस किसी बात की हम वर्णन करते हैं. और उसमें जो कुछ कहते हैं, उससे पह

अपरिचित पाठक या श्रोत्रा कहीं अ्रधिक बातें देख लेता है। इससे भारत मेंनेटाज्ञ कीहालत का वर्णन करते हुए मैंनेजानः बूककर बातों को बहुत सावधानी के साथ चित्रित किया था।

पर नेठाल्न मेंमेरे केख तो बहुत थोढ़े गोरे पढ़ते थे।और उनकी

प्वा उससे भी कम लोग करते थे। अतः भारत मेंमैंनेजो करे कह्दा था, उसका असर उल्टा द्वोना स्वाभिविक था, और हुआ

भी ठोक वैसे हो । रायटर के तारों को हजारों गोरे पढ़ते ये ।फिर

तार मेंजो विषय टिप्पणी लिखने ज्ञायक माना गया उसका

महत्त्व कहीं अधिक माना जाता है। नेटाल के गोरों के खयाल में

मेरे भाषणों काजितना असर भारत मेंपढ़ा उतना अगर दुरः असल्ञ पढ़ा होता तो शायद्‌ गिरमिट की प्रथा बन्द्‌ भी दो जाती,

और नेटाल्न के गोरों फो घड़ा नुकसान पहुँचता । फिर यह भी

कहा जा सकता हैकि भारत में वेबदनाम सी होजाते ।

इस प्रकार नेटाज् के गोरे उमड़े हुए थे |इसी समय उन्होंने

घना कि गाघी सपरिबार कोलेंढमेंवापिस लौट रह है। उसमें

और ३००-४०० भारतीय प्रवासी सी हैं। साथ ही उतने दी

उुसफिरों से भरी एक दूसरा “लादरी” स्टीमर सी है। इस खबर नेवो आग मेंघी काम किया। सारों की क्रोघाग्ति धधक