दढ्विण अफ्रीका का सत्याअह
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लाठन की भी सलाह ले लेंऔर इसके बाद अगर आप उसी
अपने विचार पर दृढ रहें तब मुमे लिखें। अवश्य कह देना चाहिये कि पत्र में इसबात की जिम्मेदारी आपको अपने ही सिर लेनी होगी कि आप खुद ही फर्याद करना नहीं चाइते तभो मैंउसका उपयोग कर सक्ूगा।” सैंनेकह्दा--“/इस विषय मेंमेते' किसी की राय नहीं जी |मेंयह भी नहीं जानता था कि आपने
मुझे इसी वात के लिए बुज्ञाया थाऔर न मुझे; यह इच्छा दी हैकि किसी के साथ इस विषय मेंसलाह-मशवरा करू | जिस समय मैंने मि० ज्ञाटन के साथ घर पर पैदल जाने का निश्चय किया था उसी समय मेंन दिल में यह तय कर किया था कि
यदि रास मेंमुझ पर कोई आक्रमण बगेरा हुआ और सुके कोई चोद लगी दो मुझेबुरा नमानना चाहिए। फिर फर्याद करने का तो सवाल हो कहाँ रहा ? मेरे लिए तो यह धार्मिक प्रश्व है। और जैसा आप कहते हैंमेंयह भी मानता हूँकि में अपने इस संयम्न सेनकेवल अपनी जाति की सेवा कर रहा हूँ, बल्कि
इसमें मेरा व्यक्तिगव ज्ञाभ भी है। इसलिए इस निश्चय की
सम्पण जिम्मेदारी अपने सिर पर ल्लेकर मैंवह चिदृढी आपको
यहीं लिख देना चाहता हूँ।यहकह कर उनसे कोरा कागज लेकर वह पत्र मैंने उन्हे वहीं लिख कर दे दिया।