पृष्ठ:दासबोध.pdf/१५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

समास ८] श्राधिदैविक ताप। भोग कराते हैं ॥३॥ शारीरिक बल, द्रव्य-बल, मनुष्य-बल, राज-वल, आदि अनेक प्रकार के सामर्थ्य से जो लोग अकृत्य, अर्थात् न करने योग्य काम, करते हैं और जो नीति के अनुसार नहीं चलते तथा पापाचरण करते है उन्हें यमयातना भोगनी पड़ती है ॥४-५॥ स्वार्थ-चुद्धि से आंखें मूंद · कर,अनेक अभिलायाएं और कुबुद्धि धर कर लोग किसीकी वृत्ति (जीविका), जमीन, द्रव्य, स्त्री और पदार्थों को हर लेते है तथा मतवालेपन से, उन्मत्त होकर, लोग जीवघात, कुटुम्बधात और मिथ्याचार करते रहते है-इसी लिए यमयातना भोगनी पड़ती है ॥६-७॥ मर्यादा छोड़ कर चलने ने ग्राम को ग्राम पति दंड देता है; नीतिन्याय छोड़ने पर देश को देशा धिपति दंड देता है; देशाधिपति को राजा दंड देता है। राजा को ईश्वर दंड देता है। राजा नीति-न्याय से नहीं चलता तभी तो उसे यमयातना भुगतनी पड़ती है। 5-६ ॥ अनीति से जो राजा अपना ही स्वार्थ देखता है; वह पापी होता है। इसी लिए कहते हैं कि, राज्य के बाद नर्क मिलता है। कहावत भी है:-" तप से राज्य, राज्य से नर्क !" ॥१०॥राजा जब राजनीति के अनुसार बर्ताव नहीं करता तब अंत में उसे यम भयंकर पीड़ा देते हैं और यम जब नीति छोड़ देता है तब देव गण उस पर धावा करते हैं ॥ ११ ॥ इस प्रकार ईश्वर ने मर्यादा बाँध रखी है । इसी लिए कहते हैं, नीति से बर्ताव करो, और अगर नीति-न्याय छोड़ दोगे तो वही यमयातना तैयार है! ॥ १२ ॥ यम को 'देव,' अर्थात् ईश्वर, ने दण्ड देने के लिए प्रेरित किया है, इसी लिए इस ताप का "आधिदैविक" नाम पड़ा है-यह यमयातना, अर्थात्तीसरा ताप, बहुत कठिन है ॥१३॥यम. दंड या यमयातना के शास्त्र में कई भेद बतलाये गये हैं। पापियों को यमदण्ड अवश्य ही भोगना पड़ता है ॥ १४-१५ ॥ पापपुण्य के बहुत से कलेवर परलोक में तैयार रहते हैं । जीच को उन्हीं कलेवरों में डाल कर देवदूत नाना प्रकार से पापपुण्य का भोग कराते हैं ॥ २६ ॥ नाना प्रकार के पुण्य करने पर वहां अनेक भोगविलास मिलते हैं और तरह तरह के पाप करने से कर्कश यातनाएं भोगनी पड़ती हैं । यह सब शास्त्र में कहा है; इस लिए अविश्वास मानना ही न चाहिए ॥ १७॥ जो वेद की आज्ञा से नहीं चलता; परमात्मा की भक्ति नहीं करता-उसे यम, यातना देता है और इसीका नाम आधिदैविक ताप है । इसका वर्णन:- ॥ १८ ॥ खलदलाते हुए नर्क में बहुत से जीव तथा पुराने कीड़े 'रव रव' शब्द करते हैं-उसीमें, हाथ-पाँव बाँध कर यम पापी मनुष्य को डाल देता है- इसको आधिदैविक ताप बोलते हैं ॥ १६ ॥ घड़े की सूरत का एक ऐसा .