पृष्ठ:दासबोध.pdf/१९२

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सद्गुरु लक्षण। या है-ऐले गुरु से कभी कल्याण नहीं हो सकता ॥३६॥ अनुभवजन्य, निश्चयात्मक, ज्ञान न होने के कारण, जैसा प्रसंग आपड़ता है वैसा, कुछ न कुछ बोलने का जो ढोंग करता है वह गुरु नहीं है ॥ ३२ ॥ अध्यात्म- निरूपण करते समय सामर्थ्य और सिद्धियों की बात आ जाने पर • जिसके मन में दुराशा या जाती है और अनेक प्रकार के चमत्कारों का चाल जान कर जिसकी बुद्धि चंचल होती है, तथा मत्सर के कारण जिनके मन में यह लोभ आ जाता है, कि “पूर्वसमय में ईश्वर के समान नामर्थ्यवान् विरक्त, भक्त और ज्ञाता होगये-कहां उनका सामर्थ्य और कहां हमारा यह व्यर्थ शान-हममें भी यदि वैसा ही सामर्थ्य होता तो अच्छा या"-वह सद्गुरु नहीं है ॥ ३३-३५ ॥ सच तो यह है कि, जब दुराशा का विलकुल नाश हो जाता है तभी ईश्वर मिलता है, जो दुराशा रखते हैं वे जुद्र और कामुक शब्दशाता हैं-वे सद्गुरु नहीं हैं ॥३६ ॥ इसी दुराशा या कामना ने बहुत से ज्ञानियों को धोखा देकर सत्यानाश कर दिया और कोई कोई तो मूर्ख विचारे कामना की इच्छा करते करते ही मर गये!॥ ३७॥ जिसके पास कामना विलकुल फटकती भी नहीं प्रौर जिनका मत अक्षय और अलौकिक है, ऐसा कोई एक बिरला सन्त है ॥३८॥ प्रात्मरूपी धन तो सब का अक्षय है-(अर्थात् आत्मा, जो सत्र के पास है, अक्षय है ) परन्तु शरीर की ममता नहीं छूटती, इसी कारण ईश्वर का मार्ग सब भूल जाते हैं ॥ ३६॥ सामर्थ्य और सिद्धियां प्राप्त हो जाने के कारण, देह का महत्व अधिक मान लेते हैं और इसी कारण देहबुद्धि का अभिमान और भी भड़क उठता है ॥ ४० ॥ अक्षय सुख को छोड़ कर जो सामर्थ्य की इच्छा रखते हैं वे मूर्ख हैं। क्योंकि कामना के समान और कोई भी दुख नहीं है ॥ ४१ ॥ ईश्वर-रहित का- भनाओं के वश, नाना प्रकार की यातनाएं पाकर, प्राणी अधोगति को प्राप्त होते हैं ॥ ४२ ॥ शरीर का अंत होने पर सामर्थ्य भी चला जाता है और अंत में मनुष्य, कामना के कारण, ईश्वर से वञ्चित रहता है ॥४३॥ श्रतएव, जो निष्काम और दृढ़बुद्धि है वही सद्गुरु इस भवसागर से पार करता है॥४४॥ सद्गुरु का मुख्य लक्षण तो यह है कि, पहले उसमें विमल ज्ञान, निश्चयात्मक समाधान और स्वरूपस्थिति चाहिए ॥ ४५ ॥ इतना ही नहीं; किन्तु उसमें प्रबल वैराग्य, तथा उदास वृत्ति भी.हो, और वह विशेषतः स्वधर्माचरण में शुद्ध हो ॥ ४६ ॥ इतना होने पर भी जो सदा अध्यात्म का श्रवण, हरिकथा का निरूपण और परमार्थ का विवरण किया करता है वही सद्गुरु है ॥ ४७ ॥ जिसने सार-प्रसार का विचार