पृष्ठ:दासबोध.pdf/१९३

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११२ दासबोध। [दशक ५ किया है वही जगत् का उद्धार कर सकता है । इसके सिवाय, लोगों का उद्धार करने के लिए नवधा भक्ति की भी बड़ी आवश्यकता है, क्योंकि भक्ति के आधार से लोक-संग्रह अच्छा हो सकता है ॥४८॥ इस लिए, नवों प्रकार की भक्तियों का जो साधन करता है वह सच्चा सद्गुरु है ॥४६॥ जिसके अन्तःकरण में तो शुद्ध ब्रह्मज्ञान है, और बाहर से, पर- . मात्मा की भक्ति भी निष्ठापूर्वक करता है-(अर्थात् भीतर से ज्ञानयोग, और बाहर से कर्मयोग का भी, जो आचरण करता रहता है) उसके द्वारा अनेक लोगों का उद्धार होता है ॥ ५० ॥ जिसे उपासना का श्रा- धार नहीं है वह परमार्थ एक दिन ढसल पड़ेगा; क्योंकि कर्मयोग के बिना अनाचार मच जाता है और लोग भ्रष्ट होजाते हैं ॥५१॥ इस लिए ज्ञान, वैराग्य, भजन, स्वधर्म-कर्म, साधन, कयानिरूपण, श्रवण, मनन, नीति, न्याय, और सर्यादा, इनमें यदि एक की भी कमी हुई तो विलक्ष- णता आ जाती है । इस लिए इन सब गुणों से जो शोभित हो वह सद्- गुरु है, अथवा यो कहिये कि सद्गुरु में ये सब गुण विलसते हैं ॥ ५२ ॥ ॥ ५३ ॥ वह (सद्गुरु) बहुतों का पालन करता है, उसे बहुतों की चिंता रहती है । समर्थ सद्गुरु के पास अनेक प्रकार के साधन होते हैं ॥ ५४॥ जो कर्म-योग-साधन के बिना परमार्थ की प्रतिष्ठा करता है वह पीछे से बहुत जल्द भ्रष्ट होता है-इस लिए महानुभाव पुरुप पहले ही से विचार कर काम करते हैं ॥ ५५ ॥ जो आचार और उपासना छोड़ देते हैं वे भ्रष्ट और अभक्त देख पड़ते हैं-ऐसों की महंती चूल्हे में जाय-उसे कौन पूछता है ! ॥५६॥ जहां कर्म और उपासना का अभाव है वहां मानो बहकने के लिए ठौर हो जाता है-ऐसे कलंकित समुदाय को प्रपंची जन (संसारी गृहस्थ ) भी हँसते हैं ॥ ५७ ॥ नीच जाति का गुरु करना भी बड़े कलंक की बात है । नीच गुरु ब्रह्म-लमा में चोर की तरह छिपता है ! ॥ ५८ ॥ ब्रह्मसभा (ब्राह्मणों की सभा) के सामने उसका तीर्थ (पुण्योदक ) नहीं लिया जा सकता और उसका प्रसाद सेवन करने से प्रायश्चित्त होता है ॥ ५६ ॥ तीर्थ और प्रसाद का त्याग करने से नीचता प्रगट हो जाती है और एकाएक गुरु- भक्ति का लोप हो जाता है ॥ ६० ॥ यदि गुरु की मर्यादा रखी जाती है, तो ब्राह्मण अप्रसन्न होते हैं, और यदि ब्राह्मणत्व की रक्षा करते हैं तो उधर शुरु की अप्रसन्नता होती है-नीच गुरु करने से ऐसी ही पंचायत पड़ती है ! ॥ ६१ ॥ इस प्रकार जब दोनों ओर से कठिनाई श्रा पड़ती है तब पछतावा लगता है। इस कारण नीच जाति को गुरुता नहीं दी जा