पृष्ठ:दासबोध.pdf/२२३

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... छठवाँ दशक। पहला समास-परमात्मा की पहचान । ॥ श्रीराम ॥ चित्त सुचित्त करना चाहिए, जो बतलाया गया है उसे मन में रखना चाहिए और एक पलभर, सावधान होकर, बैठना चाहिए ॥ १॥ यदि अपने को किसी गावँ या देश में रहना है तो पहले उस गावँ या देश के स्वामी से मिलना चाहिए । उससे भेट न करने से सुख कैसे मिलेगा? ॥२॥ इस लिए जिसको जहां रहना हो उसको वहां के मालिक से अ- वश्य मिलना चाहिए-इससे सब प्रकार भलाई होती है ॥३॥ स्वामी को भेट न करने से मान-अपमान हो जाना सहज है। ऐसी जगह अपना महत्व जाने में देर नहीं लगती ॥४॥ इस कारण, राव से लेकर रंक तक, जो कोई वहां का नायक हो, उससे अवश्य भेट करना चाहिए। विचारी पुरुष इस बात का रहस्य जानते हैं ॥५॥ उसकी भेट किये बिना नगर में रहने से राजदूत वेगार में पकड़ेंगे और चोरी न करने पर भी वहां चोरी लगेगी ! ॥ ६ ॥ अतएव, चतुर मनुष्य स्वामी से अवश्य भेट करते हैं । जो ऐसा नहीं करते उन्हें अपने गार्हस्थ्य जीवन में अनेक संकट उठाने पड़ते हैं ॥७॥ गावँ में गार्चे का अधिपति वड़ा कहा जाता है। फिर उससे देशाधिपति बड़ा होता है और देशाधिपति से भी नृपति बड़ा गिना जाता है ॥ ८॥ जो राष्ट्रभर का स्वामी होता है उसे राजा कहते हैं और बहुत राष्ट्रों के स्वामी को महाराजा कहते हैं; तथा महा- राजाओं का भी जो राजा है वह चक्रवर्ती राजा कहलाता है ॥ ६ ॥ एक नृपति होता है; एक गजपति होता है; एक अश्वपति कहलाता है और एक भूपति कहाता है; परन्तु इन सब में बड़ा राजा चक्रवर्ती है ॥ १० ॥ अस्तु; इन सब.का रचनेवाला 'ब्रह्मा' है-परन्तु उस ब्रह्मा का भी रच-. यिता कौन है ? ॥ ११ ॥ ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी जो निर्माण-

  • श्रीसमर्थ रामदासस्वामी श्रोता लोगों से कह रहे हैं कि पहले कष्टमय संसार, त्रिविध

ताप, नवधा भक्ति, विरक्त, सद्गुरु, सच्छिष्य और शुद्ध ज्ञान आदि विषयों का जो वर्णन हो चुका है उसे मन में जमाये रखना चाहिए--ऐसा न हो कि इस कान से सुनो और उस कान से निकाल दो । वे श्रोताओं को इशारा देते हैं कि अव चित्त सुचित्त करके बैठो; क्योंकि आगे अश्यात्मनिरूपण शुरू होनेवाला है ! ॥ १॥