पृष्ठ:दासबोध.pdf/२५९

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९७८ दासबोध। [ दशक ५ . . वाच्यंब्रह्मः (११) अनुभवब्रह्म (१२) आनन्दब्रह्मः (१३) तदाकारब्रह्म (१४) अनिर्वाच्यब्रह्म ॥ ६-६ ॥ ये तो चौदह ब्रह्मो के नाम हुए । अब, संक्षेप से; इनके स्वरूप का मर्म सुनिये:-॥ १० ॥ जो अनुभव में नहीं आता, सिर्फ शब्दों में ही बतलाया जाता है वह 'शब्दब्रह्म' है। 'ओमित्येकाक्षरब्रह्म' ओंकार । को कहते हैं ॥ १६ ॥ 'खंब्रह्म' का अर्थ है 'आकाशब्रह्म' यह महदा- काश की तरह व्यापक होता है। अब 'सर्वब्रह्म' का मर्म सुनिये ॥१२॥ इस ब्रह्म के विषय में श्रुति का आशय यह है कि, पंचभूतों के चमत्कार ले जितना कुछ, यह सब देख पड़ता है वह सब ब्रह्म ही है-सर्व खल्विदं ब्रह्म-यही 'सर्वब्रह्म' है । अव चैतन्यब्रह्म का रहस्य सुनिये ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ पंचभूतात्मक माया में जो चेतना लाता है वह 'चैतन्यब्रह्म' है ॥ १५ ॥ चैतन्य के ऊपर जिसकी सत्ता है वह 'सत्ताब्रह्म' है और वह सत्ता जो जानता है वह 'साक्षब्रह्म' है ॥ १६ ॥ उस साक्षीपन में जब तीन गुणों का आरोप होता है तब उसीको 'सगुणब्रह्म' कहते है ॥ १७ ॥ जिसमें गुण, आदि कुछ नहीं होते वह 'निर्गुणब्रह्म' है ॥ १८ ॥ जो वाणी-द्वारा बतलाया जाता है; पर अनुभव नहीं होता, वह 'वाच्य- ब्रह्म' है और जो अनुभव में श्राता है; पर वाणी-द्वारा बतलाया नहीं जा सकता, वह अनुभवब्रह्म ' है । भानन्द, (जो) वृत्ति का धर्म है; परन्तु वाच्य है, वह 'आनन्दब्रह्म' है । भेदाभेद से रहित जो तदाका- रत्व है, वह 'तदाकारब्रह्म' है; और 'अनिर्वाच्यब्रह्म' को क्या बतलावें- वह तो वाणी का विषय ही नहीं है-सम्वाद समाप्त!!॥ १६-२१ ॥ ये जो चौदह ब्रह्म क्रमशः बतलाये हैं उन्हें देख कर साधक लोगों को भ्रम में न आना चाहिए, किन्तु शाश्वतब्रह्म एहचान लेना चाहिए औरः मायिक ब्रह्मों को अशाश्वत समझ कर त्याग देना चाहिए | अभी चौदहों ब्रह्मा का सिद्धान्त हुआ जाता है ! ॥ २२ ॥ २३ ॥ शब्दब्रह्म' का तो शब्दों से सम्बन्ध है-वह अनुभव-रहित है; अक्त- एव वह मायिक है-उसमें शाश्वतता नहीं हो सकती ॥ २४॥ जो न तो क्षर है और न अक्षर* है उसमें 'ओमित्येकाक्षरब्रह्म' (ओइस्नइति+

  • ब्रह्म, क्षर नहीं है और अक्षर, अर्थात् अविनाशी, भी नहीं है। प्रश्न:-अविनाशी क्यों

नहीं ? उत्तरः-जहां नाश ही नहीं है वहां ' अविनाशी ' शब्द का प्रयोग होना ही क्यों सम्भव है ? जो ब्रह्म, क्षर भी नहीं है और अक्षर भी नहीं है वहां 'ओमित्येकाक्षरब्रह्म' कहाँ रो लाये.? 6 .