पृष्ठ:दासबोध.pdf/२६७

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दासबोध। [ दशक . जब ज्ञान के प्रकाश से मिथ्या कल्पना का नाश हो जाता है तव द्वैत का भास आपही आप छूट जाता है ॥ ३० ॥ कल्पना के द्वारा कल्पना इस प्रकार उड़ जाती है जैसे मृग के द्वारा मृग पकड़ा जाता है अथवा जिस प्रकार आकाशमार्ग में बाण से बाण काट डाला जाता है ॥ ३१ ॥ अस्तु । अब इस बात को स्पष्ट करके बतलाते हैं कि शुद्ध कल्पना की प्रबलता से शबल कल्पना कैसे नाश होती है ॥ ३२ ॥ शुद्ध कल्पना की पहचान यह है कि, वह स्वयं निर्गुण की कल्पना करती है और सत् स्वरूप का विस्मरण नहीं होने देती ॥ ३३॥ जो सदा स्वरूप का अनुसंधान, द्वैत का निरसन और अद्वैत-निश्चय का ज्ञान करे वही शुद्ध कल्पना है ॥ ३४ ॥ जो अद्वैत की कल्पना करे वह शुद्ध है, जो द्वैत की कल्पना करे वह अशुद्ध है और अशुद्ध कल्पना ही 'शबल' के नाम से प्रसिद्ध है ॥ ३५ ॥ अद्वैत का निश्चिय करना ही शुद्ध कल्पना का कार्य है, और शबल (अशुद्ध) कल्पना व्यर्थ के लिए द्वैत की भावना करती है ॥३६॥ जन अद्वैत-कल्पना प्रकाशित होती है उसी क्षण द्वैत का नाश होता है और द्वैत के साथ ही शवल (अशुद्ध या औपाधिक) कल्पना का भी निरास हो जाता है ॥ ३७॥ चतुर पुरुषों को यह बात जानना चाहिए, कि कल्पना से कल्पना मिटती है और 'शबल कल्पना के चले जाने पर शुद्ध कल्पना बच रहती है ॥ ३८॥ शुद्ध कल्पना जिस स्वरूप की कल्पना करती है वही स्वयं उसका स्वरूप है, और उस स्वरूप.की कल्पना करते करते वह स्वयं तद्प हो जाती है ॥ ३६॥ कल्पना का . मिथ्यापन प्रकट हो जाने पर, सहज ही तद्रूपता आ जाती है और आत्म- निश्चय होने पर कल्पना का लय हो जाता है ॥ ४० सूर्य के प्रस्त होने पर जिस प्रकार अंधकार प्रबल होता है, उसी प्रकार निश्चय के डिगने से द्वैत' उमड़ता है ॥ ४१ ॥ तथा ज्ञान के मलीन होते ही अज्ञान प्रवल होता है। अतएव सद्ग्रन्थों का श्रवण अखंड रीति से करते रहना चाहिए ॥४२॥ अस्तु । अब यह बार्ता बस करो । एक ही बात से आशंका मिटाता हूंः-अर्थात् जिसको द्वैत का भास होता है वह : सर्वथा नहीं है ॥४३॥ पिछला संशय मिट गया, अब आगे के लिए सावधान होना चाहिए ॥ ४४ ॥