पृष्ठ:दासबोध.pdf/२९६

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समास ३] निर्गुण में माया कैले हुई? २१५ चंचल वायु उत्पन्न होती है, उसी प्रकार अचल और निराकार स्वरूप में मूलमाया होती है ॥ २७ ।। परन्तु यह कभी नहीं हो सकता कि, वायु के होने से आकाश की निश्चलता में, किसी प्रकार की बाधा श्रावे ॥२८॥ इसी तरह मूलमाया के होने से, परमात्मा को निर्गुणता में भी, किसी प्रकार की, बाधा नहीं आती। इस दृप्रान्त से पिछला संशय मिट जाता है ॥ २६ ॥ अब, कुछ यह बात नहीं कि, वायु पहले ही से हो । इसी तरह मुलमाया भी कुछ पुरातन नहीं हो सकती; क्योंकि उसे यदि सत्य माने तो वह फिर भी लीन हो सकती है !॥ ३० ॥ घायु की ही तरह मूल- माया का भी रूप जानना चाहिए । वह भास होती है। परन्तु देखने में नहीं आती ॥ ३१ ॥ वायु को श्राप सत्य कहा करें; परन्तु क्या वह कभी दृष्टि में पाती है ? उसकी ओर देखने से तो सिर्फ उड़ती हुई धूल (या हिलती हुई पत्तियां ) देखने में आती हैं ॥ ३२ ॥ बस, वायु की ही तरह मूलमाया भी भासती है; पर दिखती नहीं । उसके बाद अविद्या- माया का विस्तार है ॥ ३३॥ जैसे वायु के योग से दृश्य (धूल, आदि) आकाश में दिखता है, वैसे ही, मूलमाया के योग से, यह जग बना है ॥ ३४ ॥ आकाश में जिस प्रकार मेवाडम्बर अकस्मात् आ जाते हैं, उसी प्रकार, माया के ही गुण से, यह जग बना है ॥ ३५ ॥ श्राकाश में जिस प्रकार एकाएक नश्वर मेघ आजाते हैं, उसी प्रकार ब्रह्म में यह मिथ्या माया उत्पन्न हो जाती है ॥ ३६॥ उस मेघाडम्बर के कारण जान पड़ता है कि आकाश की निश्चलता चली गई है; पर ऐसा नहीं है-चास्तव में आकाश वैसा ही बना रहता है ॥ ३७॥ वैसे ही माया के कारण जान पड़ता है कि निर्गुण, सगुण हो गया; पर ऐसा नहीं है-वह वैसा ही, जैसा का तैसा, बना रहता है ॥३८॥ वादल आते हैं और चले जाते हैं; पर तो भी आकाश जिस प्रकार अपने पूर्वरूप में बना रहता है, वैसे ही माया पाती है और जाती है; पर निर्गुण ब्रह्म में, माया के कारण, गुण नहीं पाता है-वह जैसा का तैसा ही बना रहता है ॥३६॥ जिस प्रकार आकाश, पर्वत के शिखरों पर रखा हुआ सा दिखाई देता है। पर वास्तव में वह केवल भास है, उसी प्रकार निर्गुण भी, माया के कारण, सगुण भास होता है; परन्तु वास्तव में वह निर्गुण ही है ॥४०॥ ऊपर, आकाश की ओर, देखने से नीलिमा (नीलापन) फैली हुई सी देख पड़ती है; पर उसे मिथ्या भास.जानना चाहिए ॥४१॥ मालूम होता है कि आकाश औंधा हुआ चारो ओर से घिरा है और सम्पूर्ण विश्व को कन्द किये हुए है; पर वास्तव में ऐसा नहीं है, वह चारो