पृष्ठ:दासबोध.pdf/३५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नात्मस्थिति। २७३ साधु जिसके लिए नाना प्रकार के साधनों और निरूपणों का परिश्रम करते है वह ब्रह्मरूप, जब सारासार के विचार से, स्वयं ही हो जाता -तब फिर वहां करने और न करने इत्यादि का कुछ विचार नहीं कहना ॥ ३० ॥३॥ मान लो, कोई भिखारी राजाज्ञा सुन कर डर गया नीर बनी भिखारी फिर, नागे चल कर, राजा होगया; अब उस दशा में उसे राजाज्ञा का भय कैसे रह सकता है ? ॥ ३२॥ वेद वेदाज्ञा से किस प्रकार चलें, सच्छास्त्र शास्त्रों का अभ्यास किस प्रकार करें और तीचे तीयों को किस प्रकार जायँ ? ॥ ३३ ॥ अमृत अमृत का सेवन कैसे करे? अनन्त अनन्त को कैसे देख्ने ? और भगवान् भगवान् को कैसे लन्द ? ॥ ३४॥ सत्स्वरूप सत्स्वरूप से कैसे मिले ? निर्गुण निर्गुण की भावना कैसे करे? और आत्मा आत्मा में कैसे रममाण हो? ॥ ३५ ॥ स्वयं भंजन, अंजन कैसे लगाये ? धन धन को कैसे प्राप्त करे ? और निरंजन किस प्रकार निरंजन का अनुभव करे ? ॥ ३६ ॥ स्वयं साध्य साधन कैसे करे ? ध्येय ध्यान कैसे धरे? और जो उन्मन है (अर्थात् जिस का मन लय होगया है ) वह मन को किस प्रकार रोके ? ॥ ३७ ॥