पृष्ठ:दासबोध.pdf/३९५

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दासबोध । [ दशक ११ • एकत्र करना चाहिए; परन्तु गुप्तरूप से !॥१॥उन सब को अखंड रीति से काम में लगाये रहना चाहिए; सम्पूर्ण संसार को उपासना में लगाना चाहिए; लोग जब जान लेते हैं कि, यह सच्चा निस्पृह महन्त है तब कहीं वे उसकी आज्ञा पाने की इच्छा करते हैं ॥ १६ ॥ जब पहले कष्ट सहोगे तब कहीं फल मिलेगा। जहां कष्ट ही नहीं वहां फल कहां का ? बिना उद्योग या प्रयत्न के सब व्यर्थ ही है ॥ २० ॥ अनेक लोगों को ढूंढ ढूंढ़ कर अपने हाथ में लेना चाहिए; उनकी योग्यता जानना चाहिए और फिर, योग्यता के अनुसार, किसीको पास और किसीको दूर, रखना चाहिए ॥२१॥ योग्यता के अनुसार कार्य होता है । जब योग्यता ही नहीं है तब वह श्रादमी किस काम का ? सब के मन की अच्छी तरह परीक्षा कर लेनी चाहिए ॥ २२ ॥ योग्यता देख कर काम बतलाना चाहिए; और कार्य-शक्ति देख कर विश्वास रखना चाहिए; तथा अपना विचार कुछ और ही रखना चाहिए ॥ २३ ॥ ये अनुभव के बोल हैं- पहले किये गये हैं; पीछे बतलाये गये हैं; यदि अच्छे लगें तो कोई ग्रहण करे ! ॥ २४ ॥ महन्त को चाहिए कि, वह अन्य अनेक महन्त उत्पन्न करे और उन्हें 'युति' तथा 'बुद्धि ' से पूर्ण करके, ज्ञाता बना कर, अनेक देशों में फैलावे ॥ २५ ॥ .

  • यह समास बड़े महत्व का है-इसमें जो बातें कही गई हैं वे अनुभवपूर्ण हैं।

श्रीसमर्थ रामदास स्वामी कहते हैं कि ये सब वातें उन्होंने पहले की हैं तव पीछे से सिखाई हैं-इनमें कच्चापन नहीं है । यह समास मानो उनका आत्मचरित्र ही है।