पृष्ठ:दासबोध.pdf/४५

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दासबोध। " अपने जीवन की पिछली बातों का मरण ही आता था तब व अपने उपास्य देव ाराम की स्तुति करने लगत और भगवान् की महिमा कविता में गात गात अपने जीवन-चरित की अनेक बातों का सहज सटेन्च कर जाते थे। समर्थ के जिन " स्फुट प्रकरणों " में उनके आत्मचरित्र का कुछ परिचय मिलता है वे सब इसी सहज और आनन्दावस्था के प्रेमोदार हैं । इन पद्यों में समर्थ ने यह कहीं नहीं लिखा कि ये राब काम मैंन किये; सब जगह " राम की, राम भोक्ता" ही कहा है । समर्थ जैस निरहंकारी और निस्पृह साधु पुरुष को यही उचित भी था । हमारे समान साधारण जन जो अहंकार में फंस पड़े हैं वही “ मैंन" और " मेरा" कहा करत हैं। दासबोध के दशक १ समास ७ में समर्थ कहते हैं:- मी कर्ता ऐसे म्हणसी । तेणे तूं कष्टी होसी। राम कर्ता म्हणतां पावसी । यश कीर्ति प्रताप ॥ ३६॥ अदि तू कहेगा कि मैं का हूँ तो नुझे कष्ट होगा और यदि कहेगा कि राम कर्ता है तो तू यश, कीर्ति और प्रताप पावेगा!" अस्तु । आनन्दवन-भुवन नामक ५९ पयों के एक स्फुट प्रकरण में समर्थ ने इस बात का का वर्णन किया है कि उन्होंन श्रीरामचन्द्रजी की आज्ञा से जनोद्धार का जो काम आरम्भ किया था वह कहाँ तक सफल हुआ। इस कविता के सारांश पर ध्यान देने से समर्थ-चरित्र का सिंहावलोकन आप ही आप हो जाता है। प्रथम पद्य में समर्थ आनन्दवन-भुवन. ( अर्थात् नासिक-पंचवटी-ग्रान्त ) को जाने का अपना हेतु इस प्रकार वतलाते हैं:-"जन्म- दुःख, जरादुःख, बार बार के निल दुःख और संसार का त्याग करने के लिए।" इससे यह सिद्ध होता है कि समर्थ जिस समय घर से भागे थे उसी समय उन्होंने अपने मन में परमार्थ-विषयक हेतु निश्चित कर लिया था। दूसरे पद्य में समर्थ कहते हैं कि आनन्दवन-भुवन में पहुँचते ही मेरा चित्त श्रीरामचरणानुराग में लीन होगया। इसके बाद. वे कहते हैं कि इस संसार में मैंने कैसे कैसे बड़े बड़े दुःख सहे, स्वधर्माचरण में कैसे अनेक विन्न उपस्थित हुए; उन विनों को दमन करने के लिए 'चिन्नन्न' भीम की प्रार्थना की। फिर, इसके बाद, इस बात का आवेशयुक्त वर्णन किया है कि हनुमानजी ने सब विनों का नाश कैसे किया । यह वर्णन पढ़ने से जान पड़ता है कि स्वधर्माचरण में, अर्थात् जप, तप, अनुष्ठान, पुरश्चरण और तीर्थयात्रा आदि भगवत्प्राप्ति के साधनों का अभ्यास करते समय, श्रीसमर्थ को कैसी आपदाओं का सामना करना पड़ा। इसके वाद 'आनन्दवन-भुवन ' तीर्थ की महिमा गाकर फिर उस “मुहिम " का पौराणिक रीति से वर्णन किया है जो बंधविमोचन" या लोकोद्धार के लिए भगवान् रामचन्द्र ने देव. गण सहित की और समर्थ के कार्यों में सहायता दी । इस मुहिम वर्णन के अन्त में, इस • मुहिम का उद्देश भी उन्होंने स्पष्ट वतला दिया. है:- 1