पृष्ठ:दासबोध.pdf/४५२

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समास ८] अखण्ड ध्यान । ३७३ दशा में वेद, शास्त्र और ब्राह्मण को कौन पूँछता है ? ॥ २६ ॥ ब्रह्म-ज्ञान के विचार का अधिकार ब्राह्मण ही को है; ऐसा कहा भी है कि, "वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः"-अर्थात् सब वर्गों का गुरु ब्राह्मण है ॥.३०॥ परन्तु ब्राह्मण बुद्धिच्युत हो गये हैं, आचार-भ्रष्ट होगये हैं और गुरुत्व छोड़ कर शिप्यों के भी शिष्य बन गये हैं। ॥३१॥ कितने ही दावलमल्लक (सुसल्मानी तीर्थ ?) को जाते हैं कितने ही पीर को भजते हैं और कितने ही अपनी इच्छा से 'तुरुक' हो जाते हैं ॥ ३२ ॥ यही कलियुग के प्राचार का हाल है। विचार का कहीं पता नहीं है; अब इसके श्रागे तो वर्णसंकर ही होनेवाला है ! ॥ ३३॥ नीच जाति को गुरुत्व प्राप्त हुआ है, कुछ थोड़ी महंती बढ़ा कर शूद्र लोग ब्राह्मणों का आचार डुबो रहे हैं ! ॥ ३४ ॥ ब्राह्मणों को यह मालूम नहीं होता, उनकी वृत्ति ही नहीं मुकती और उनका मूर्खता का मिथ्या अभिमान नहीं मिटता! ॥ ३५ ॥ राज्य म्लेच्छों के घर में चला गया; गुरुत्व कुपात्रों में चला गया; हम न श्ररत्र में रहे न परन में; कुछ भी नहीं रहा!॥३६॥ ब्राह्मणों को ग्रामण्य ने डुबो दिया; जिन विष्णु ने भृगुलता को श्रादरपूर्वक धारण किया उन्हीं विष्णु ने परशुराम होकर ब्राह्मणों को शाप दिया ! ॥३७॥ हम भी वही ब्राह्मण हैं; दुख के साथ कहना पड़ता है कि, पुरखा लोग हमारे पीछे ग्रामण्य लगा गये! ॥ ३८ ॥ अव के ब्राह्मणों ने क्या किया? ऐसे हुए कि, जिन्हें अन्न भी नहीं मिलता ! यह बात तुम सभी लोग जान सकते हो ! ॥ ३९ ॥ अच्छा, पुरखों को क्या कहें ? ब्राह्मणों का भाग्य ही ऐसा जानना चाहिए ! प्रसंग आ पड़ने पर, साधारण तौर पर, इतना कह दिया; क्षमा करना चाहिए। ॥४०॥ आठवाँ समास-अखण्ड ध्यान । ।। श्रीराम ।। अच्छा, जो हुआ सो तो होगया; अब तो ब्राह्मणों को जगना चाहिए! ॥१॥ विमल हस्त से परमात्मा की पूजा करना चाहिए, इससे सव वैभव मिलता है । मूर्ख अभक्त और व्यस्त लोग दरिद्रता भोगते हैं ॥२॥ पहले ईश्वर को पहचानना चाहिए; फिर अनन्य भाव से उसका भजन करना चाहिए। उस सर्वोत्तम का अखंडरूप से ध्यान रखना चाहिए॥३॥ सव में जो उत्तम है उसका नाम है 'सर्वोत्तम ।। आत्मानात्म-विवेक