पृष्ठ:दासबोध.pdf/४५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दासबोध । [दशक १४ . . नाम 1 गोबर पायती है ! ॥ १२ ॥ जैसे कुत्ते का 'व्यान' नाम हो, पुत्र को इन्द्र ' नाम से पुकारते हों, और कुरूप होने पर भी 'सुन्दरा' कह .. कर पुकारते हो। ॥१३॥ जैसे मूर्ख का नाम 'सकलकला' हो, गधी का 'कोकिला' हो और फूटी आंखवाले को जैसे 'आँखवाला कहते हो ॥ १४ ॥ जैसे धनकुन का नाम तुलसी (विष्णुप्रिया) हो, चमारिन का नाम काशी हो और अति शूद्रिणी को जैसे भागीरथी कहते हो! ॥ १५ ॥ और जैसे अंधकार को छाया; चैसी ही माया है ॥ १६ ॥ जैसे कान, अँगुलियां, संधियां, करतल आदि शरीर के कोई कोई भाग रविरश्मियों के कारण रम्य लाल रंग के चमकते हुए अंगार से देख पड़ते हैं चैसी ही माया है ॥ १७ ॥ जैसे भगवै रंग का वस्न देखने से जान पड़ता है कि, आग सी लगी है; पर विचार करने से निश्चय हो जाता है, वैसी ही माया है ॥ १८ ॥ जैसे जल में हाथ पैर और अँगु- लियाँ बहुत सी, छोटी, बड़ी और टेढ़ी देख पड़ती हैं वैसी माया ॥ १६ ॥ भौरेटे से जैसे पृथ्वी औंधी या घूमती हुई मालूम होती है, कोंचल होने से सारे पदार्थ पीले जान पड़ते हैं और सन्निपातवाले को जैसे सव पदार्थ उलट-पलट अनुभव में आते है वैसी ही माया है ॥२०॥ जैसे कोई कोई पदार्थ-विकार योन्ही भासमात्र दिखता है, और का और ही देख पड़ता है, वैसी ही माया है ! ॥ २१ ॥