पृष्ठ:दासबोध.pdf/४६५

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दासबोध [ दशक १५ यह नहीं मालूम होता; विवेकी पुरुष सब कुछ समझते हैं ॥ ८ ॥ लोगों को यह बात बिलकुल नहीं जान पड़ती कि, छोटा-बड़ा सब बुद्धि के कारण है। (परन्तु लोग, अज्ञानता के कारण, ) जो पहले पैदा होता है उसीको बड़ा कहते हैं ॥ ॥ राजा चाहे वयस में छोटा हो; पर वृद्ध लोग उसे नमस्कार करते हैं ( इसका कारण क्या है ? ) विवेक की गति विचित्र है ? ( पर लोगों को ) मालूम होनी चाहिए ॥ १० ॥ साधारण लोगों का ज्ञान प्रायः सभी अनुमानरूप है-वह लोकरूढ़ि का लक्षण है ॥ ११॥ किसको किसको रोके ? साधारण लोगों को क्या मालूम ? किसको किसको और कहां तक कहें ? ॥ १२ ॥ छोटा जब कभी भाग्य- वान् बन जाता है तव भी लोग उसे तुच्छ कहते हैं; इस लिए इन ढीठ लोगों को दूर ही रखना चाहिए ॥ १३ ॥ ठीक ठीक किसीकी बात समझ नहीं सकते, उचित रीति से राजनैतिक विपयों को नहीं जानते- परन्तु व्यर्थ ही, मूर्खता के कारण, वड़प्पन दिखाते हैं ! ॥ १४ ॥ निश्चया- स्मक कोई बात नहीं मालूम है, वास्तव में उन्हें कोई मानता भी नहीं है। केवल वय से प्राप्त हुई बड़ाई को कौन पूछता है ? ॥ १५ ॥ जो लोग कहते हैं कि, बड़ों में बड़प्पन नहीं है और छोटों में छोटपन नहीं है उनमें चतुरता नहीं है या यों कहिये कि, वे सूर्ख है ॥ १६ ॥ विना.गुण के बड़- प्पन व्यर्थ है; बड़प्पन का अनुभव ही ठीक है (और उसीकी कदर है) ॥ १७ ॥ तथापि यदि बड़ो को मानना है तो पड़ों को अपना बड़प्पन भी जानना चाहिये, ऐसा न करने से आगे, बड़प्पन के अभिमान से, कष्ट उठाना पड़ेगा ॥१८॥ अतएव यह बतलाने की जरूरत नहीं कि, जिस पुरुष में वह सब से बड़ा अन्तरात्मा प्रकाशित है उसीकी महिमा हैं ॥ १६ ॥ इस लिए विवेक से सब लोगों को चतुरता सीखना चाहिए। विवेक का अभ्यास न करने से प्रतिष्टा नहीं रहती ॥ २०॥ और यदि प्रतिष्ठा चली गई तो समझ लो कि, सब गया । जन्म पाकर क्या किया? और उलटे जानबूझ कर अपना अपमान करा लिया ! ॥ २१ ॥ ऐसे पुरुष को सब स्त्रियां तक गाली देती हैं। लोग कहते हैं कि, देखो कैसा फंस , १ एक कहावत भी है:-" अकिल बड़ी की बैस ?" २ जव छोटा, पर ज्ञानवान, बालक किसी बूढ़े से कोई ज्ञान की बात बतलाता है तब अकसर ये बूढ़े लोग कह बैठते हैं कि, " चलो, अव, कलियुग आया और बड़ों का बड़प्पन और छोटों का छोटपन नहीं रहा- ये कल के छोकरे छोटे मुहँ बड़ी बातें करने लगे;" पर ऐसा कहनेवाले बूढ़ों को मूर्ख समझना चाहिए-ऐसा रामदास स्वामी कहते हैं !