पृष्ठ:दासबोध.pdf/४६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दासबोध। [ दशक १५ कीड़े मर कर पृथ्वी में मिल जाते हैं ॥ ६ ॥ अनन्त पदार्थ भरे हैं-उनका विस्तार कहां तक बताया जाय ? पर उन सब के लिए इस पृथ्वी को छोड़ कर और कहां ठिकाना है ? ॥ ७॥ पेड़-पत्ते और तृण पशुओं के खाने के बाद गोबर हो जाते हैं और खाद, मूत तथा भस्म बन कर फिर उन्हींकी पृथ्वी होती है ॥ ८ ॥ उत्पत्ति, स्थिति और संहार के चकर में आनेवाले सब पृथ्वी में मिल जाते हैं। जितना कुछ होता है और ‘जाता है वह सव फिर पृथ्वी ही होती है॥॥ नाना प्रकार के धान्यों की राशियां बढ़ कर आकाश में जा लगती हैं, पर अन्त में सब पृथ्वी से मिल जाती हैं ॥ १०॥ लोग नाना प्रकार की धातुओं को गाड़ रखते हैं, परन्तु बहुत दिनों के बाद वे मिट्टी हो जाते हैं; सोने और पत्थर की भी यही गति होती है ॥ ११ ॥ मिट्टी का सुवर्ण होता है और मिट्टी ही के पत्थर होते हैं, परन्तु प्रखर अग्नि में भस्म होकर फिर उनकी पृथ्वी ही होती है ॥ १२ ॥ सोने का जर बनाया जाता है, जर अन्त में सड़ जाता है, रस होकर फैल जाता है, उसकी फिर पृथ्वी ही होती है ॥ १३ ॥ पृथ्वी से धातुएं उपजती हैं-वे अग्नि से गल कर रस होती हैं। फिर, इसके बाद, उस रस का कठिनकंप होकर पृथ्वी होती है ॥ १४ ॥ नाना प्रकार के जल से गंध, छूट कर पृथ्वी का रूपः, प्रगट होता है, दिनों दिन जल सूखता..जाता है फिर वही पृथ्वी की. पृथ्वी ही रह जाती है ॥ १५ ॥ पत्र, पुष्प, फल आते हैं; उन्हें अनेक जीव खा जाते हैं; उन जीवों के मरने पर फिर वही पृथ्वी हो जाती है ॥ १६ ॥ जितना कुछ आकार उतने सब को पृथ्वी का आधार है । प्राणिमान होते, जाते हैं- अन्त में पृथ्वी ही है ॥ १७॥ यह कहां तक बता ? विवेक से सब जान लेना चाहिए और उत्पत्ति · तथा संहार का मूल समझना चाहिए ॥ १८ ॥ श्राप सूख कर पृथ्वी होती है, और फिर वह आप ही में लय हो जाती है, क्योंकि अग्नि के योग से भस्म होती है ॥ १६ ॥ आप तेज से होता है; फिर तेज ही उसे सोख लेता है, वह तेज वायु ले होता है, जिसे फिर वायु ही लय कर डालता है ॥ २०॥ वायु गगन में निर्माण होता है; फिर गगन में ही लय हो जाता है; इस प्रकार उत्पत्ति और लय को अच्छी तरह विचारो ॥ २१ ॥ जो जहां पैदा होता है वह वहीं लय हो जाता है; इस प्रकार पंचभूत नाश हो जाते हैं ॥२२॥ जो निर्माण होता है वही भूत है-वही फिर पीछे से लय होता है, इसके बाद वही शाश्वत परब्रह्म रह जाता है ।। २३ ॥ वह परब्रह्म जब तक नहीं, मालूम होता है तब तक जन्म-मृत्यु नहीं मिटती । चार