पृष्ठ:दासबोध.pdf/४६८

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समास ४] चंचल के लक्षण। ३८६ हानियों में, नाना जीवों के रूप में, जन्म लेना पड़ता है ॥ २४ ॥ यह बात अच्छी तरह समझ लो कि, जई का मूल चंचल है और चंचल का मूल निश्चल है; पर निश्चल का मूल ही नहीं है ॥ २५ ॥ पूर्वपन उसे कहते हैं जो होता है, सिद्धान्त उसे कहते हैं जो लय होता है और जो '(बोनों पक्षों से भिन्न ) पक्षातीत ठहरा हुश्रा है बद परब्रह्म है ॥ २६ ॥ यह अनुभव से जानना चाहिए । विचार से पहचानना चाहिए । बिना बिचारे व्यर्थ परिश्रम करना मूर्खता है ॥ २७ ॥ जो ज्ञानी लाज या । संकोच से घिरा रहता है, उसे निश्चल परब्रह्म कैसे मिल सकता है- वह व्यर्थ के लिए माया में गड़बड़ किया करता है ॥ २८ ॥ माया के विलकुल नाश हो जाने पर फिर कैसी स्थिति रह जाती है ? उसका विचार विचक्षण पुरुषों को स्वयं करना चाहिए ॥ २६ ॥ माया का विल- कुल निरसन हो जाने पर श्रात्मनिवेदन हो जाता है-ऐसी स्थिति में वाच्यांश नहीं रहता-वह विज्ञान किस तरह जाना जाय? ॥३०॥ जो लोगों के कहने में लगता है वह सन्देह ही से इवता है, इस कारण अनुभव को बार बार देखना चाहिए ॥३१॥ पाँचवाँ समास-चंचल के लक्षण । ।। श्रीराम ॥ दो ( प्रकृति पुरुप) के अनुसार तीन (त्रिगुण) चलते हैं, निर्गुण (परब्रह्म ) में अपधा प्रकृति उत्पन्न होती है और ऊपर नीचे छोड़ कर (अंतरिक्ष में) इंद्रधनुप की तरह वर्तती है ॥ १॥ परवाजा' (अनि) पनती (देह ) को खा जाता है, लड़का (प्रत्येक तत्व) बड़ी चतुराई के साथ, बाप को ( जिस तत्व से पैदा हुआ है उस तत्व को) मार डालता है और चारों जनों का (चारों तत्वों का) राजा (आकाश) भूला हुआ है (अदृश्य या लापता है) ॥२॥ देव (आत्मा) देवालय (शरीर) १ पंचभूतों की उत्पत्ति के क्रमानुसार अग्नि से जल, जल से पृथ्वी, पृथ्वी से देह की उत्पत्ति हुई है । इस लिए देह का अग्नि परवाजा और अग्नि का देह पनती हुआ । २ जैसे पृथ्वी जल को सोख लेती है, जल अग्नि को चुझा डालता है और अमि वायु को प्रलयकाल में लय कर देता है और फिर स्वयं भी लय हो जाता है । आकाश, अर्थात् अन्तरात्मा भी रह कर भी भूल जाता है या यों कहिए कि, वह परब्रह्म में लीन हो जाता है।