पृष्ठ:दासबोध.pdf/४७

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दासबोध। बोलतां भवानी माता, महीन्द्र दास्य इच्छिती। बोलणे हे प्रचीतीचे, अन्यथा वाउगे नव्हे ।। अर्थात् " जी का हेतु पूर्ण हो गया; अव कामना का मन में काम नहीं है । बहुत कीर्ति हुई और अप्रतिम लाभ मिल चुका । भवानी माता के प्रसन्न होने पर बड़े बड़े राजा सेवा करने की इच्छा करते हैं । यह अपने अनुभव की बात हम कह रहे हैं----इस मिथ्या कभी न समझना। तात्पर्य यह है कि श्रीरामदासस्वामी के ग्रन्थों में है। उनके चरित्र की बहुतेरी बाने मालूम होती हैं; क्योंकि उन्होंने जब कोई सिखाबन की बात बतलाई है तब वार वार यही कहा है कि यह हमारे अनुभव की बात है । इसलिए पाटकों को समर्थ के जीवनो देश की सफलता के विषय में, हमने अपनी ओर से कुछ न लिख कर, उन्हीं के वचनों का कुछ सारांश देने का यत्न किया है । आशा है कि पाठकों को उपयुक्त विवेचन से, समर्थचरित्र के सिंहावलोकन करने में सहायता मिलेगी। हम समझते है, और इसमें सन्देह नहीं कि हमारे पाठक भी यही समझेंगे, कि जब श्रीसमर्थ रामदासम्वामी अपने सारे संकल्पित कामों की सफलता का पुनरालोचन करत होंगे तब उनके अन्तःकरण में प्रेम, आनन्द, धन्यता और हर्प आदि सात्विक मनोवृत्तियों की लहरे अवश्य उमड़ती होंगी।