पृष्ठ:दासबोध.pdf/४८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४०२ दासबोध [ दशक १५ ॥२॥ जब बहुत ठंढ होती है तब श्राकाश ठंढा मालुम होता है। और गरम हवा से आकाश सूखा मालूम होता है ॥३॥ परन्तु ऐसा जो कुछ जान पड़ता है वह होता है और चला जाता है । यह तो कभी नहीं हो सकता कि वह भी आकाश की तरह निश्चल रहे ॥४॥ उत्तम ज्ञातृत्व की बात अच्छी तरह समझ कर देखना चाहिए, आकाश निराभास है T और भास मिथ्या है ॥५॥ उदक फैलता है, वायु फैलता है और आत्मा तो अत्यंत ही फैलता है-सारे तत्व फैलते हैं ॥ ६ ॥ चंचल और निश्चल सब अन्तःकरण को मालूम होता है । विचार करने से ही प्राणिमात्र को सब कुछ मालूम होता है ॥ ७ ॥ विचार करते करते (मनन करते रहने. से) अन्त में निवृत्तिपद में लीन हो जाते हैं और फिर वियोग नहीं होता ॥ ८ ॥ वहां (निवृत्तिपद में ) ज्ञान का विज्ञान हो जाता है, मन उन्मन हो जाता है। इस प्रकार विवेक से तत्व-निरसन करने पर अनन्य हो जाते हैं ॥ ६॥ पिता (अंतरात्मा) को खोज कर देखने से चंचल का निश्चल हो जाता है। उस ठौर में देव-भक्त-पन चला जाता है-अनन्यता होती है ॥१०॥ वहां ठौर ठिकाना श्रादि पदार्थ कुछ नहीं है-पदार्थमात्र विलकुल है ही नहीं। सब के जानने के लिए कुछ तो भी बतलाते हैं ! ॥ ११ ॥ जव अज्ञानशक्ति का निरसन हो जाता है, ज्ञानशक्ति भी लय हो जाती है तब, देखो कि, वृत्तिशून्य हो जाने पर, कैसी स्थिति होती है ॥ १२ ॥ मुख्य निर्विकल्प समाधि उसे कहते हैं जब चंचल (माया) का गड़बड़ ही न रहे । माया का भ्रम नाश हो जाने पर वह शान्त (पुरुष) निर्वि- कारी शान्त ( परब्रह्म) में लीन हो जाता है ॥ १३ ॥ चंचल (माया) वास्तव में विकारी है; परन्तु यह चंचल वहां रहता ही नहीं । निश्चल के तई चंचल मिल कर नहीं रह सकता ॥ १४॥ महावाक्य का विचार करने के लिए सन्यासी ही अधिकारी है; पर जिस पुरुष पर दैवी कृपा है वह भी उसका विचार करता है ॥ १५॥ संन्यासी, सम्यक् प्रकार से त्याग करनेवाले को कहते हैं-सब विचारवान् पुरुष संन्यासी हैं । अपनी करनी निश्चय करके अपने ही पास है ॥ १६ ॥ जगदीश के प्रसन्न होने पर सन्देह कहां रह सकता है ? अस्तु । ये विचार विचारी पुरुष जानते हैं ॥ १७ ॥ जो विचारी पुरुष समझ जाते हैं वे निस्संग हो जाते हैं। और जो देहाभिमानी रह जाते हैं वे देहाभिमान की ही रक्षा करते हैं ॥१८॥ अलक्ष (ब्रह्म) ध्यान में बैठ जाने से पूर्वपक्ष (सन्देह ) उड़ जाता है और हेतुरूप अन्तर्साक्षी श्रात्मा भी परमात्मा में लय हो जाता है |॥ १६॥ आकाश और पाताल दोनों अन्तराल के नाम हैं। दृश्य, अर्थात् पृथ्वी