पृष्ठ:दासबोध.pdf/५०६

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अध्यात्म-श्रण। ४२७ ३२॥ अनेक प्राणी जन्म लेकर आते हैं और मर कर चले जाते हैं और अपने कार्यों का इच्छानुसार वर्णन करते हैं ॥ १३ ॥ परन्तु जिसमें आत्मा अयंडमय से प्रकाशित नहीं है वहां सारा सपाट है। श्रात्मा के बिना विशारा काटरूप (देह ) क्या जान सकता है ? ॥ १४ ॥ ऐसा हात्मशान श्रेष्ठ है, इसके समान और कुछ नहीं है। जगत् में जो विवेकी मजन पुरुष हैं वे ही इसे जानते हैं ॥ १५ ॥ पृथ्वी, आप और तेज का बिगर इस पृथ्वी में ही मिल जाता है; पर अन्तरात्मा, जो सब तत्वों का बीज है, अलग ही रहता है ॥ १६ ॥ जो कोई वायु के आगे भी विवेक करेगा उस पुरुष को श्रात्मा निकट ही मिलेगा ॥ १७ ॥ परन्तु वायु, आकाश, गुणमाया, प्रकृति-पुरुष और मूलमाया, इन सब का, क्रमशः, सूक्ष्म रूप से विचार करके प्रतीति प्राप्त करना कठिन है ॥ १८ ॥ मायादेवी के गड़बड़ में पड़ कर फिर सूक्ष्म में कौन मन लगाता है ? पर जो (सूक्ष्म में मन लगा कर) समझता है उसकी सन्देहवृत्ति मिट जाती है !! १६॥ मूलमाया (ब्रह्मांड का) चौथा देह है, वह विदेह होना चाहिए, जो देशातीत होकर रहता है वही साधु धन्य है ॥ २० ॥ विचार से जो ऊंचे पर चढ़ते हैं उन्हींको ऊर्ध्व गति (मोन्) प्राप्त होती है; बाकी लोगों को, जो पदार्थज्ञान में ही पड़े रहते हैं, अधोगति मिलती है ॥ २१ ॥ पदार्थ देखने में तो अच्छे दिखते हैं; पर वे क्षणभर ही में नाश हो जाते हैं, इस कारण लोग दोनों ओर से भ्रष्ट होते हैं ॥ २२ ॥ इस लिए पदार्यशान और नाना जिनसों का अनुमान (भ्रम) नादि सब छोड़ कर निरंजन (परब्रह्म ) का खोज करते रहना चाहिए ॥ २३ ॥ श्रष्टांग योग, पिंडज्ञान, उससे भी बड़ा तत्वज्ञान, और उससे भी श्रेष्ठ प्रात्मशान, का विचार करना चाहिए ॥ २४ ॥ मूलमाया के भी उस तरफ़, जहां मूल में (आदि में) हरि-संकल्प (अइंब्रह्मास्मि का स्फुरण) उठता है वहां, उपासना के योग से पहुँचना चाहिए ॥ २५ ॥ फिर, उसके बाद, निखिल और निर्गुण ब्रह्म है । वह निर्मल तथा निश्चल है। उसकी उपमा आकाश से दी जा सकती है ॥ २६ ॥ वह यहां से र लेकर वहां तक भरा हुआ है, प्राणिमात्र से मिला हुआ है, पदार्थमात्र से लगा हुआ है और सब में व्याप्त है ॥ २७ ॥ उसके समान और कुछ बड़ा नहीं है, उसका विचार ऐसा सूक्ष्मातिसूक्ष्म है कि, जो पिंड और ब्रह्मांड का संहार होने पर मालूम होता है ॥ २८ ॥ अथवा पिंड-ब्रह्मांड के रहते हुए भी, यदि विवेकप्रलय देखा जाय तो भी, यह बात मालूम हो सकती है कि, वास्तव में शाश्वत क्या है |॥ २६ ॥ सारा तत्व-विवेचन