पृष्ठ:दासबोध.pdf/८४

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समास २] गणेश-स्तुति। ३ हो जाते हैं ! पापी पछताते हैं । भक्तिमार्ग की निन्दा करनेवाले उसीकी प्रशंसा करने लगते हैं ॥ ३३ ॥ बद्ध, अर्थात् संसारी मनुष्य, मुमुक्षु, अर्थात् मोक्ष की इच्छा करनेवाले हो जाते हैं, मूर्ख अति दक्ष हो जाते हैं और अभक्ता लोग भी, भक्तिमार्ग पर आकर, मोक्ष पाते हैं ॥ ३४ ॥ इस ग्रन्य से नाना प्रकार के दोष नाश होते हैं । पतित, अर्थात् पापी, पावन, अर्थात् पवित्र, हो जाते हैं । और इसके श्रवणमात्र से प्राणी उत्तम गति पाते हैं ॥ ३५ ॥ देहबुद्धि के अनेक धोखे, बहुत से सन्देहपूर्ण भ्रम और संसार के सब उद्वेग इस अन्य के सुनने से नाश होते हैं ॥ ३६ ॥ ऐसी इसकी फलश्रुति है। इसके सुनने से अधोगति नाश होती है और मन को विश्राम तथा समाधान मिलता है ॥ ३७॥ और, फिर, सब से मुख्य बात तो यह है कि जिसकी जैसी भावना उसको वैसी सिद्धि (यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी) जो मनुष्य मत्सर रखेगा उसे वही मिलेगा ॥३८॥ दूसरा समास-गणेश-स्तुति । ।। श्रीराम ॥ - हे ओंकाररूप सर्वसिद्धिफलदायक, अज्ञान और भ्रान्ति के छेदक, बोध- रूप गणनायक, आपको नमस्कार है ॥१॥ मेरे अन्तःकरण में विराजिये और सदासर्वदा वास करिये । तथा कृपाकटाक्ष करके मुस वाक्यशून्य से बुल- वाइये ॥२॥ तेरीही कृपा के बल से जन्मजन्मान्तर की भ्रान्ति दूर होती है और विश्वभक्षक काल भी सेवा करता है ॥३॥ तेरी कृपा के उछलतेही वित बिचारे काँपने लगते हैं। और तेरे नाममात्रही से वे मारे मारे फिरते हैं ॥ ४॥ इसी लिए तो तेरा विघ्नहर नाम पड़ा है। हमारे समान अनाथों का तूही सहारा है। हरि और हर आदि से लेकर जितने देवता हैं सभी तेरी वन्दना करते हैं ॥ ५॥ मंगलनिधि, अर्थात् शुभ की खान, गणेशजी की चन्दना करके काम करने से सब सिद्धियां प्राप्त होती हैं और किसी प्रकार की विघ्न-बाधा नहीं आती ॥ ६ ॥ उसका स्मरण कर- तेही परम समाधान होता है । मन, अन्य सब इन्द्रियों को छोड़कर, केवल नेत्रों में श्रा वसता है। सब अंग लंगड़े हो जाते हैं, अर्थात् और सब इन्द्रियों का विस्मरण हो जाता है* ॥ ७ ॥

  • उपर्युक्त ७ पद्यों में गणेशजी के निर्गुणरूष का वर्णन । अब आगे सगुण का वर्णन

आता है।