२ दासबोध । [ दशक १ अनुभव से भी मालूम हो जायगी-अर्थात् अन्य की सचाई-झुठाई अभी की अभी, उसके अध्ययन से प्रत्यक्ष होगी-किसीके कुछ कहने से क्या ॥ १६ ॥ लोग यदि मत्सर के कारण इसे मिथ्या कहेंगे तो मानो वे सभी ग्रन्थों का (नाना प्रकार के अन्यों की सम्मति का) और भगवद्वाक्यों का उच्छेदन अर्थात् खंडन करेंगे ॥ १७ ॥ शिवगीता, रामगीता, गुरुगीता, गर्भगीता, उत्तरगीता, अवधूतगीता, वेद, वेदान्त, भगवद्गीता, ब्रह्मगीता, हंसगीता, पांडवगीता, गणेशगीता, यमगीता, उपनिषद् और भागवत इत्यादि नाना ग्रन्थों की सम्मति इसमें कही गई है। इन ग्रन्थों में भगव- द्वाक्य ही हैं और ये निश्चय करके यथार्थ हैं ॥१८-२०॥ ऐसा कौन पतित है जो भगवद्वचन में अविश्वास करे ? इस ग्रन्थ में जो कुछ कहा गया है वह भगवद्वाक्य से विरहित नहीं है॥२१॥पूर्ण अन्य देखे बिना जो व्यर्थ दोप लगाता है वह दुरात्मा, दुरभिमानी पुरुप मत्सर के कारणही ऐसा करता है। उसके मन में अभिमान से मत्सर और मत्सर से तिरस्कार आता है। और फिर, इसके बाद, क्रोध का विकार वेग से उठता है ॥२२-२३ ॥ यह वात प्रत्यक्ष है कि वह मनुष्य अहंभाव के कारण ही मनमलीन होकर कामक्रोध से सन्तप्त हुआ है ॥ २४ ॥ जो मनुष्य कामक्रोध के वश में है उसे भला कैसे कहें ? देखो अमृत का सेवन करने पर राहु मारा गया! अर्थात् राहु की तरह भीतर से सड़े हुए, अर्थात् मनम- लीन, लोग इस अमृततुल्य ग्रन्थ से कुछ लाभ न उठा सकेंगे। अच्छा, श्रव, ये बातें जाने दो। जैसा जिसका अधिकार है वह वैसा लेगा। परन्तु अभिमान छोड़ना सब से अच्छा है ॥ २५-२६ ॥ पहले श्रोताओं ने जो यह पूछा कि क्यों जी, इस ग्रन्थ में क्या है सो सब संक्षेप रीति से बतला दिया गया ॥ २७ ॥ अब श्रवण करने का फल कहते हैं । प्रथम तो इस ग्रन्थ के श्रवण से आचरण उसी समय बदल जाता है और संशय का मूल एकदम टूट जाता है ॥ २८ ॥ सुगम मार्ग मिल जाता है । दुर्गम साधन की आवश्य- कता नहीं होती । सायुज्य मुक्ति का मर्म, अर्थात् रहस्य, सहजही मालूम हो जाता है ॥ २६ ॥ इस ग्रन्थ के सुनने से अज्ञान, दुःख और भ्रान्ति नाश होती है, तथा शीघ्रही ज्ञान आ जाता है ॥ ३०॥ योगियों का परम भाग्य वैराग्य प्राप्त होता है और विवेकसहित, यथायोग्य, चातुर्य का ज्ञान हो जाता है॥ ३१ ॥ जो लोग भ्रान्त, अवगुणी और कुलक्षणी हैं वह भी इस ग्रन्थ के पढ़ने से सुलक्षणी हो जाते हैं और धूर्त, तार्किक तथा विचक्षण लोग अवसर परखने लगते हैं ॥३२॥ जो आलसी हैं वे उद्योगी