पृष्ठ:दासबोध.pdf/९९

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'दासबोध । [ दशक १ संचार करने लगे ॥ ६॥ कोई तेज में तेज ही हो गये, कोई जल में मिल गये और कोई देखते ही देखते वायुस्वरूप में अदृश्य हो गये ॥ ७ ॥ कोई एक शरीर से अनेक शरीर धारण कर लेते हैं, कोई देखते ही देखते गुप्त हो जाते हैं, कोई एक जगह बैठे बैठे ही, उसी समय में, अनेक स्थानों और समुद्रों में भी भ्रमण करते रहते हैं ॥ ८॥ कोई वाघ, सिंह, आदि भयानक जीवों पर बैठते हैं, कोई अचेतन को चलाते हैं, कोई तपोबल से मुर्दो को जिलाते हैं ॥ ६॥ कोई अग्नि को भन्द करते हैं; कोई जल को सुखाते हैं, और कोई जगत् की प्राण-वायु को रुद्ध कर रखते हैं ॥१०॥ ऐसे हठनिग्रही और निश्चयी सिद्ध लाखों हो गये, जिन पर अनेक सिद्धियों की कृपा थी ॥११॥ कोई मनोसिद्ध, कोई वाचासिद्ध, कोई अल्प- सिद्ध, कोई सर्वसिद्ध-ऐसे नाना प्रकार के विख्यात सिद्ध हो गये ॥१२॥ कोई नवविधा भक्तिरूपी राजपथ से गये और परलोक का निजस्वार्थ (पर- मार्थ) प्राप्त कर लिया तथा कोई योगी गुप्तपंथ से ब्रह्मभुवन पहुँचे ॥१३॥ कोई वैकुंठ को गये, कोई सत्यलोक में रहे और कोई शिवरूप बन कर कैलाश में बैठे ॥१४॥ कितने ही नर-देहधारी इन्द्रलोक में इन्द्र हुए, कितने ही पितृ- लोक में जा मिले, कोई तारागणों में बैठ गये और कोई क्षीरसागर में जा बसे ॥ १५॥ कोई सालोक्य, सामीप्य, सारूप्य और सायुज्य चार प्रकार की मुक्तियों का, अपनी इच्छा के अनुसार, सेवन कर रहे हैं ॥१६॥ ऐसे अनन्त सिद्ध, साधु और सन्त अपने हित में प्रवृत्त हुए ।यह सब नरदेह का प्रताप है। इसका कहां तक वर्णन किया जाय ? ॥ १७॥ इस नरदेह ही के आधार से, नाना साधनों के द्वार से और विशेष कर सारासार विचार से बहुतेरे मुल होगये ॥१८॥ इस नरदेहही के सम्बन्ध से बहुत लोग उत्तम पद पा चुके और अहंता छोड़कर स्वानन्द से सुखी हुए ॥ १६ ॥ मनुष्यदेह पाकर ही इन सब का संशय नष्ट हुआ है और वे लोग सद्गति को प्राप्त हुए हैं ॥ २० ॥ सब लोग जानते हैं कि, पशुदेह से : गति नहीं है। नरदेह ही से परलोक मिलता है ॥ २१ ॥ संत, महन्त, ऋषि, मुनि, सिद्ध, साधु, समाधानी, भक्त, मुक्ता, ब्रह्म- ज्ञानी, विरक्तायोगी, तपस्वी, तत्त्वज्ञानी, योगाभ्यासी, ब्रह्मचारी, दिगम्बर, संन्यासी, षट्दर्शनी, तापसी, ये सब, नरदेह ही में हुए हैं ॥ २२-२३ ॥ इसी लिए नरदेह श्रेष्ठ है । यह सब देहौ में बड़ी है । इसीके द्वारा यम- यातना मिटती है ॥ ॥ २४ ॥ नरदेह स्वाधीन है। अन्य देहों की तरह